Hindi Poetry : ठंढ से ठिठुरते गोरैये याद आते हैं – Ranjan Kumar
जब दरख्तों पर कभी खडखडाहट होती है , फिर क्यों ठंढ से ठिठुरते गोरैये याद आते हैं .. याद आती हैं वो झुग्गियाँ भी , और फिर . अनगिनत बेबस आँखे सहमे सहमे से क्यों …? बमुश्किल ही मनुष्य कहे…
जब दरख्तों पर कभी खडखडाहट होती है , फिर क्यों ठंढ से ठिठुरते गोरैये याद आते हैं .. याद आती हैं वो झुग्गियाँ भी , और फिर . अनगिनत बेबस आँखे सहमे सहमे से क्यों …? बमुश्किल ही मनुष्य कहे…
अपने वालिद के मौत पर जनाब निदा फाजली साहब ने जो यह कविता लिखी थी इस कविता से मेरा पहला परिचय हुआ जनाब निदा फाजली साहब के साहित्य संसार से … दो बार मिला निदा फाजली साहब से…पहली बार…
बिगड़ी बात बनेसब तेरे नाम से .. राधा मिलन करा दो मेरा श्याम से .. ओ माता मिलन करा दो मेरा श्याम से ! पावन तट हो यमुना का , और कदम्ब की छाया हो ! …
ये प्यार मोहब्बत धोखा है, इस धोखे से मैं डरता हूँ ! सच कहूँ , इसी उलझन के कारण दूर ही अक्सर रहता हूँ !! नहीं चाहता बनना टिशु पेपर उपयोग करो और निपटा दो ! कुछ…
जलता रहा मैं रात भर चिराग बन बन के,अंधेरों में पल पल हरपल सहर होने तक बस तुझको राह दिखलाने के लिए ! अब जब सुबह की आभा फूट रही है देखो दूर वातायन में .. बुझा ही तो दोगे तुम मुझे…
तुझे नंगा सच पसंद नहीं , और मुझे … रेशमी जुमलों में लिपटा झूठ ! छोड़ो यार.. ये रोज रोज का ताना बाना , इस दोस्ती की बुनियाद बहुत जर्जर है , अब विपरीत दिशा में अपनी मंजिलें तलाशते हैं…
पथरा गयीं आँखे इस पथ को तकते तकते , तुम फिर नहीं आए कभी यहाँ बरसों से ! तेरे वादों की पोटली थी जो मेरी धरोहर है , गुम हुयी है यहीं कहीं तलाश में अब तक…
मृत्यु है उत्सव मनाओ ठाट से, ग़मगीन होने की जरुरत है कहाँ ? बस एक बार आता है यह त्योहार सा, मौका नहीं देता है फिर एक साँस का ! जिन्दगी में जिन्दगी को जान लो..! फिर समझ आएगा ये…
कुछ चौराहे मेरा रास्ता निहारेंगे ! मैं कब का दफ़न हो चुका, ए दोस्त उन्हें ये इत्तला करना ! वक़्त की दहलीज पर कभी .. मिल जाएँ , जो क़दमों के निशान मेरे .. मेरी मय्यत समझ उस दिन वहीं…
रेत पर लिखी थी कभी हम सब ने रिश्तों की तहरीरें… रेत फिसल गयी रिश्ते बाकी हैं … कई बार लिखते हैं जमीन पर रिश्तो की तहरीरें .. और फिर न रिश्ते ही बचते हैं न जमीन …. आ जाता है …