दरिया मे तैरती डूबती
उतराती सी
एक कश्ती हूँ मैं ,
लहरों के थपेड़ों से
डरकर नहीं पूछती
अंजाम कभी !!
इसे मेरा हौसला
कहती है ये
बहती हुई नदी अक्सर ,
और किनारों को
लगता है लहरो के संग
दुस्साहस है !!
मुझे सफर की
ललक है और
सफर जारी है अनवरत ,
जब रुकेंगे तो
होगा हिसाब
कितनी दूर चली आई थी !!
– रंजन कुमार
उतराती सी
एक कश्ती हूँ मैं ,
लहरों के थपेड़ों से
डरकर नहीं पूछती
अंजाम कभी !!
इसे मेरा हौसला
कहती है ये
बहती हुई नदी अक्सर ,
और किनारों को
लगता है लहरो के संग
दुस्साहस है !!
मुझे सफर की
ललक है और
सफर जारी है अनवरत ,
जब रुकेंगे तो
होगा हिसाब
कितनी दूर चली आई थी !!
– रंजन कुमार