तुलसीदास रचित श्री रामचरित मानस सुंदर काण्ड से संकलित हनुमान सीता संवाद ..बड़ा ही मार्मिक चित्रण है जब हनुमान जी माँ सीता से लंका में पहली पहली बार अशोक वाटिका में मिलते हैं जब माँ सीता का मन उद्विग्न है और वह अशोक के वृक्ष के नीचे बैठ अपनी विपदा पर प्रलाप कर रही हैं और उपर बैठे हनुमान जी राम नाम की मुद्रिका नीचे गिरा देते हैं ..आगे का प्रसंग पढ़ें और आनंद लें इस भक्ति रस का भक्त कवि तुलसीदास जी के रामचरित-मानस के सुन्दर काण्ड से ..
हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी।।
माया तें असि रचि नहिं जाई।।
मधुर बचन बोलेउ हनुमाना।।
सुनतहिं सीता कर दुख भागा।।
आदिहु तें सब कथा सुनाई।।
कहि सो प्रगट होति किन भाई।।
फिरि बैंठीं मन विस्मय भयऊ।।
सत्य शपथ करुनानिधान की।।
दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी।।
कहि कथा भइ संगति जैसें।।