flying bird

घर लौट चल पंछी 
बसेरे में 
हुयी अब शाम 
सूरज डूबता है ,


फिर निकलना है 
तुझे कल
सूरज से पहले
और
फिर से दाने ढूँढना है !


क्रम रोज का यह
अनवरत चलता रहेगा ,
सोच ले यह भी
की तू खुद के लिए
कभी भी क्या जियेगा ?


नीड़ की परवाह है
क्या आंधियो में ..
सोच अब तू क्या करेगा ?


पुरुषार्थ कर या फिर दुआएँ
पर नहीं कोई जोर तेरा ,
आंधियो पर !


तो क्या नियति ही ..
जो करेगा वह करेगा ?


घर लौट चल पंछी 

बसेरे में 
हुयी अब शाम 
सूरज डूबता है..!

– रंजन कुमार

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