सुबह,
रोशनी की पहली किरण
जब पड़ीं
बालकनी में रखे
उस काले गुलाब के
फूल से लिपटीं
उन ओस की बूंदों पर,
.
थोड़ी शर्मा सी गयी हो जैसे ,
वो एक ओस की बूँद
आलिंगन में वादों के शायद..
गुलाब की पंखुड़ियों से बद्ध है,
वो काली पंखुड़ी में
वो ओस की बूँद भी हाय..
जैसे काली रात में
चाँद निकला हो
अंगड़ाईयां लेता हुआ ..!
अंगड़ाईयां भी वो उफ्फ..
सच मानों..
तुम्हारे जुल्फों का बिखरना भी
आज
याद बेहद आया !
– Vvk