किसी अपने को असमय खो देने का महान रुदन गीत-
“चिट्ठी ना कोई सन्देश, जाने वो कौन सा देश…”
महान ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह और चित्रा के इकलौते बेटे विवेक सिंह की 1990 में एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। इस दर्दनाक हादसे के बाद जगजीत सिंह और चित्रा ने कई सालों तक संगीत से दूरी बना ली।
जगजीत सिंह ने फिर गाई अपने बेटे की याद में एक ग़ज़ल जो कि ग़ज़ल का एक मास्टर पीस है, पीड़ा और दुःख का यह एक गान बन गई। अपनों को किसी हादसे में खोने वाले अनगिनत लोगों के दिल की बात बन गई।
जब आप यह जानकर इस ग़ज़ल को सुनेंगे कि इसे वह पिता गा रहा है जो अपना इकलौता पुत्र एक सड़क दुर्घटना में खो चुका है तो आप ख़ुद को रोने से नहीं रोक पाएंगे। आंसुओं की धारा बह निकलेगी… हृदय पर असर करने के मामले में संगीत यहां अपने सर्वोच्च स्थान पर है… जो आपके दिल को चीरकर रख देता है।
चिट्ठी ना कोई सन्देश
जाने वो कौन सा देश
जहाँ तुम चले गए…
इस दिल पे लगा के ठेस
जाने वो…
जगजीत की ही तरह जो लोग अपनों को खो चुके हैं, वे ये ज़रूर सोचते होंगे कि आख़िर वह कौनसा देश है जहाँ हमारा अपना हमें छोड़कर चला गया? जहाँ ना कोई चिट्ठी जा सकती है और ना कोई संदेश हम भेज सकते हैं…
जब जगजीत सिंह “इस दिल पे लगा कर ठेस” कहते हैं तो यक़ीन कीजिए अगर ख़ुदा ने दिल को मज़बूत गोश्त के लोथड़े की जगह शीशे का बनाया होता तो यह टूटकर चूर चूर हो जाता।
एक आह भरी होगी,
हमने ना सुनी होगी…
जब दुर्घटना होती है तो वह अपना आह भरता है घायल होकर, लेकिन हम वहाँ नहीं होते इसलिए उसे सुन नहीं पाते…
जाते जाते तुमने,
आवाज़ तो दी होगी…
जब जान निकलने वाली होती होगी तब वह अपना हमें याद करके और बिछड़ने के ग़म में पुकारता होगा, आवाज़ लगाता होगा…
हर वक़्त यही है गम,
उस वक़्त कहाँ थे हम ?
कहाँ तुम चले गए…
यह ग़म हर वक़्त उन्हें सताता होगा कि काश हम वहां होते, उसे बचा लेते, उसे तड़पने नहीं देते, उसे अस्पताल ले जाते, उसे बचाने के लाखों जतन करते और हो सकता था कि हम उसे बचा लेते!!! लेकिन अफसोस कि उस वक़्त हम वहां नहीं थे और वह हमें छोड़कर पता नहीं कहां चला गया, किस देश चला गया?
हर चीज़ पे अश्कों से,
लिखा है तुम्हारा नाम..
अब तुम्हारी याद में हर चीज़ पर हमारे अश्क़ टपकते हैं और उन अश्कों से तुम्हारा हर चीज हर जगह नाम लिख दिया है…
ये रस्ते घर गलियाँ,
तुम्हें कर ना सके सलाम…
तुम हमें छोड़कर ऐसी जगह गए ( घर से दूर किसी सड़क दुर्घटना में) कि ये घर गलियां भी तुम्हें आख़िरी सलाम या अलविदा नहीं कह सकी…
हाय दिल में रह गई बात,
जल्दी से छुड़ा कर हाथ..
कहाँ तुम चले गए ?
बहुत सी बातें थीं, जो तुमसे कहना चाहते थे । सोचा था बाद में कहूंगा लेकिन तुम तो इतनी जल्दी हाथ छुड़ाकर चले गए ( बस 20 साल की उम्र में)…
अब यादों के कांटे
इस दिल में चुभते हैं,
ना दर्द ठहरता है
ना आंसू रुकते हैं !
तुम्हें ढूंढ रहा है प्यार,
हम कैसे करें इकरार…
कहाँ तुम चले गए
जगजीत सिंह यह गाते वक़्त कितनी बार रोए होंगे, कितनी बार संगीतकार उत्तम सिंह ने उन्हें आकर ढांढस बंधाई होगी… कितनी बार चित्रा ने यह ग़ज़ल रोते रोते सुना होगा और जगजीत सिंह ने उन्हें संभाला होगा, कितनी बार उन्हें यह ग़ज़ल बीच में ही बंद करना पड़ी होगी…कौन जानता है सिवाय उनके जिन्होंने यह सब देखा हो या हो सकता है विवेक की रूह ने यह सब मंज़र देखा हो और वह भी रो रही हो और कह रही हो… मैं कहीं नहीं गया पापा।
21 साल बाद 2011 को यह जगजीत सिंह भी अपने बेटे के देश चले गए। दे गए मोहब्बत के, जुदाई के नग़मे हमारे दिल की धड़कनों के लिए और आँखों के अश्कों के लिए…!
मेरे बचपन के दोस्त का रोड एक्सीडेंट हुआ जिसमें उसकी पत्नी की जान चली गई। उनका 9 साल का बेटा अंशुल सबकी नज़रें बचाकर एक अस्थि अपनी जेब में रखकर ले आया और घर के एक कोने में बैठकर उसे देखकर और अपनी माँ को याद कर करके रो रहा था…
अंशुल बड़ा होकर जगजीत सिंह की यह ग़ज़ल सुनेगा तो उसका दिल फिर रुदन करने लगेगा और गाने लगेगा- माँ कहाँ तुम चली गई…अपने ग़म को बर्दाश्त करने वाले अनगिनत जगजीत और अंशुल को मेरा सलाम।
लेखक – डॉ अबरार मुल्तानी
पोस्ट संकलन रंजन कुमार
लेखक और चिकित्सक डॉ अबरार मुल्तानी .. एक परिचय :
डॉ अबरार मुल्तानी साहब जितने सहृदय आयुर्चिवेदिक कित्सक हैं उतने ही बेहतरीन इंसान और उतने ही अच्छे लेखक ! डॉ साहब की किताबों की एक पूरी श्रृंखला है जिसे पढकर आजीवन स्वस्थ रहा जा सकता है इनके बताए जीवन पद्धति को जीवन में अपनाकर !स्माइलिंग हर्ट के प्रेसिडेंट डॉ अबरार मुल्तानी साहब लगातार लेखन करते रहें और असाध्य रोगों का सरल निदान आयुर्वेद से करते रहें यही मेरी और से शुभकामनाएं है !
डॉ साहब की किताबें जो मैंने पढ़ी हैं और मेरी लाइब्रेरी की शोभा भी हैं ये ..उनकी लिस्ट यह है ..
इस पोस्ट को शेयर करने के पीछे की भूमिका : यह आलेख मैंने अपने एक चिकित्सक और लेखक मित्र डॉ अबरार मुल्तानी साहब की फेसबुक वाल पर पढ़ी थी और शेयर किया था फेसबुक पर जो आज फिर से पुरानी यादों में यादों के झरोखें में से झाँक उठी तो इसे अपने ब्लॉग पाठकों से शेयर करने से खुद को रोक न सका !
अभी 21 जनवरी को आकाशवाणी बरेली से जब मै पसंद जवानों की कार्यक्रम के लिए बुलाया गया था प्रोग्राम करने के लिए तब पहला गाना ही मेरी पसंद का यही था चिट्ठी न कोई सन्देश ..जो मैंने मेरे जीवन में माँ का दर्जा रखनेवाली भाभी माँ को समर्पित किया था जिनको हर लम्हें में आज भी मै मिस करता हूँ ,और दर्द वही है…
..जाते जाते तुमने आवाज तो दी होगी ..हर वक़्त यही है गम,उस वक़्त कहाँ थे हम ?कहाँ तुम चले गए ?
आज फिर उस प्रोग्राम की रिकोर्डिंग सुनते हुए वह गीत बज रहा था आज और वही गीत उसी वक्त फेसबुक पर इस पोस्ट के रूप में आ गया ..आँखें नम हो उठीं और इसे ब्लॉग पर लाने के लोभ से खुद को रोक न सका ! पोस्ट आपने पढ़ लिया …रेडिओ प्रोग्राम की मेरे लिंक यह रही जिसमें मेरी भाभी माँ को समर्पित पहला गीत यही है …