Part 02 – पसाकोलोजिया के पप्पा से पहली मुलाक़ात

मुझसे अब और बेइज्जती होते देखना सहन सीमा के मेरे पार जाने लगा था बस में चढ़े उस नौजवान की,तो मैंने जबरन महेंद्र बाबू को कहकर उसके हिस्से का किराया दे दिया और वापस अपनी सीट पर बैठ गया आकर !
 
धीरे धीरे सरकता हुआ वह नौजवान भीड़ में ही अब मेरी सीट के बगल में आकर खड़ा हो गया और मुझसे पूछा मै कौन हूँ ..!
मैंने जैसे ही अपना नाम बताया वह मुझे पहचान गया और कहने लगा मै उसे मामू कहूँ.. मै सच में उनका साला ही हूँ जो आपके चचा हुए.. और हमारा नाम है श्री पराजित मिश्रा !
 
अब मुझे भी यकीन होने लगा या तो यह कोई चार सौ बीस ही है या फिर वास्ता किसी चरस पीने वाले से पडा है इसकी दिमागी हालत कुछ खिसकी हुयी सी है ! नाम भी जबरदस्त है पराजित मिश्र ..!
 
बात के तार को मैंने यहीं से जोड़ा,नाम पराजित मिश्र क्यों है ..? ओठ खींच के उसमे खैनी ठूंसते हुए वह बोला .. बात ऐसा है की दुनिया वाले मुझे नहीं समझते और मै उनको नही समझ पाता ..!
 
हमारे बाबूजी को लगता है हम निकम्मा हैं नालायक हैं निठल्ला हैं कुछ काम के नहीं हैं तो नाम हमरा तो कुछ और है पर सभी जगह हमको पराजित मिश्र के नाम से ही लोग जानने लगे  अब क्योंकि बाबूजी इसी नाम से हमको बुलाते हैं !
 
लेकिन बाबूजी यह नहीं देखते कि हमारा टैलेंट कितना बड़ा है दूसरे कई बातों में जैसे .. हमको ताश में कोई नहीं हरा सकता हम हमेशा ही जीत जाते हैं लेकिन किस्मत ही साली खराब है, जब यही ताश पैसा दांव पर लगा के खेलें तो फिर हार जाते हैं ताश में !
 
बाबूजी इसलिए हमको पकिया जुआरी कहते हैं क्योंकि मै  अक्सर उनके जेब से रुपया निकाल लेता हूँ इस उम्मीद में कि आज जीत के आयेंगे इससे ढेर सा रुपया मगर किस्मत भी न ..!
 
मेहरारू हमारी कहती है मेहनत करते  रहिये एक दिन जरुर सफल होंगे आप, लेकिन अभी तक तो ऐसे ही चल रहा है ! अगले महीने बच्चा देवे वाली है मेहरारू हमारी .. फिर बाप बेटा मिल के जुआ खेलेंगे और सबको हरावेंगे जिनसे भी जुआ में जितना हारे हैं अबतक !
 
वैसे तो दिमाग फटने लगा था इस महापुरुष की बातों से जो अब हमारी सीट पर ही बैठकर हमे अब अपने कारनामे सुनाये जा रहा था ! फिर भी रहा नही गया तो पूछ लिए, होनेवाले बच्चे को जुआरी बनायेंगे .. इतना अद्भुत ख्वाब शायद ही किसी पिता ने देखा हो आजतक कभी ..!
 
और लडका ही हो यह कैसे निश्चित है आपको ..? “यकीन है हमको कि लडका ही होगा ..सब हारा हुआ रुपया हम बाप बेटा इनसे जुआ का जुए से ही जीतेंगे इसलिए भगवान मेरी बात जरुर सुनेंगे !”
 
वह जोर देकर बोले जा रहा था जैसे यहाँ भी उसकी ही मर्जी होनी हो ..! लेकिन अगर लडकी ही हो गयी तो .. मैंने फिर प्रश्न दाग दिया तो वह ज्यादा ही असहज हो गया अब .. नहीं होगा हो ही नहीं सकता और हो गयी तो उसको बेटा बनायेंगे जुआ खेलना सिखायेंगे और हम बाप बेटी मिलके फिर इन सबको सबक देंगे न, जिन्होंने मुझे बहुत बार हराया है .. मै समझ गया गांजा पीने  वाला पकिया गंजेड़ी बुझाता है इ आदमी और एक नम्बर का झक्की .. तभी आँखें लाल हैं नशे में ! इसलिए खामोश हो गया अब मै !
यह आदमी फिर चालू हो गया .. आज सुबह बाबू जी बोले खेत में आलू कोड़ा रहा है जाकर खेत में देखो मजूर लोगो को हम दुपहरिया  बाद आवेंगे ! हम सौ रुपया निकाले थे उनके जेब से उ लेके दोस्तों के साथ पुनपुन किनारे ताश में रम गये और फिर हार गये सब पूरा १०० रुपया !
 
आगे जीतेंगे के फेर में १०० रुपया उधारी का खेल गये मगर बात बनी नहीं अपनी और तभी बाबूजी लगे आकर के डंडा मुझपर बरसाने ..उन्हीं की पिटाई से हमरा यह हाल हुआ है .. मास्टर नहीं कसाई हैं हमारे बाबू जी एक नम्बर के कसाई !
 
रहम तनिको न किये और कुर्ता पैजामा फट गया हमारा .. देह दुखाने लगा  डंडे की मार से, पीठ पर बाम उखड़ आया .. चूतड़ पर पजामा फट गया .. तब भी नही पसीजे ..बोले हैं घर से भाग जाओ .. घुन्सने नही दिए घर में  तो हम भाग आये !
 
वैसे तो ससुराल चले जाते लेकिन न पैसा है न सलामत कपड़ा देह पर अभी .. अब दीदी के पास जायेंगे .. और फिर दो चार दिन बाद लौटेंगे घरे .. मेहरारू बच्चा देनेवाली है तो हमको कहीं और मन नहीं न लगेगा .. तबतक बाबूजी का खीस ठंढा हो जाएगा .. वह आदमी बके जा रहा था यूँ ही ..!
 
ठीक है सब लेकिन अपनी बात कहने की एक तमीज तो सीखिए .. मेहरारू बच्चा देवे वाली है इ भाषा कौन सिखाया आपको ? थोड़ी इज्जत देके सलीके से बोलिए न इसको .. ओह ओ रंजन बाबू .. तो आप ऐसे सुनना चाहते हैं .. हमारी औरत पेट से है चढल महीना है पूरा आ जल्दी ही बियाने वाली है इसी महीने .. अब ठीक हुआ न .. सब आता है हमको ..हम भी पढ़े लिखे हैं खूब .. कोई जाहिल नहीं है .. उ तो आज बाबू जी के कारण !
 
मुझे अब जोर का गुस्सा आ गया था पढ़े लिखे कहनेवाले इस तमीजदार की तमीज देख के जो अपनी पत्नी के प्रसव के लिए भी वह भाषा इस्तेमाल कर रहा था जो जानवरों के लिए करते हैं हमलोग गाँव में .. बियाना ..!
 
सफर खत्म हुआ मंजिल आ गयी और वह उतर गये जबकि मुझे बस स्टैंड तक जाना था और बस स्टैंड में मै भी उतर गया !
 
दो दिन बाद मेरे उन्हीं चाचाजी के सुपुत्र ने मुझे आवाज लगाई जो अक्सर मुझसे गणित पढने आता था और लगातार पिछले तीन सालों से उसे गणित पढाता था मै चाचा के कहने पर .. तब घर से बाहर आये तो देखा पराजित मिश्र भी उस दिन बस वाले साथ ही हैं और मेरा किराए का पैसा लौटाने आये हैं .. दो दिन इसलिए लग गये क्योंकि नया कुर्ता पाजामा सिलवाने में समय लगा और आज सिल के मिला तो चले आये ..!
 
अब तो उनको मामू कहना मेरी विवशता थी चचा के बेटे के कारण यह साबित हो गया की पराजित मिश्र उसके मामू ही हैं .. उनको ले गये छत पर, चचा के बेटे .. उसको उमेश कहता हूँ यहाँ कहानी में सुविधा होगी .. उमेश् बाबू को मैंने मैथ के प्रश्न सोल्व करने दे दिए और मामू से अब बातचीत हुयी .. मामू पराजित मिश्र ने फिर पैसा देना चाह किराए का तो मैंने इनकार कर दिया .. तब वह फिर बोले .. क्या पता यही ५ रुपया मुझे जुआ में विजयी बना दे ..तब मै विजय मिश्र भी तो हो सकता हूँ अब इस पांच रूपये से आपके जुआ खेल के किस्मत चमकाऊँगा अपनी ..
 
यह आदमी नहीं सुध्ररेगा यह मुझे समझ आ गया था तो मैंने विषय पलटा और उमेश बबुआ से पूछा .. कैसा रहा हो मामू के साथ 02 दिन ..? उमेश हंसने लगा तब फिर मामू ही बोले .. दो दिन में मेरे फटे पायजामे से दिख रहे मेरे चुतड  पर इ उमेशवा हिसाब बना रहा है जली हुयी माचिस की तीली लेकर .. और इसका उ चचेरा भाई है न उ रमेशवा .. उ एका एक एक दुनी दू हमरे तशरीफ़ पर ही पढ़े जा रहा है .. बहुते डेहनडल है इ भगिना सब ..!
 
पराजित मामू थोड़ी देर बाद चले गये उमेश के साथ .. और फिर उमेश से ही पता चला की पराजित मामू को बेटी  हुयी है .. मामू को या ममानी को उमेश ..? नही भैया ममानी को हुयी मामू की भी तो बेटी ही न होगी वो .. ओह ओ ..और फिर मेरी आँखों के सामने उ दिन के बस का बात मामू का पूरा का पूरा घूम गया ..!
 
और अब  समय के चक्र में पलट के पराजित मामू की वही २० साल की बेटी हमारे एक ४० साल के फरोफ्रेसर भैया से बियाही गयी है  जो आज पसाकोलोजि भौजी के नाम से जानी जा रही है .. जो हमारे इस उपन्यास की नायिका और खलनायिका भी है.. पराजित मामू की बिटिया उतने ही संस्कारी और सलीकेदार है जितने पराजित मिश्र थे.. जिसकी कहानी आगे इस पसाकोलोजी भौजी उपन्यास में आप पढनेवाले हैं !
 
 
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क्रमशः जारी .. 

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#पसाकोलोजी_भौजी

 #फरोफ्रेसर_पुराण
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Read Introduction : 
 
पसाकोलोजि भौजी उपन्यास की भूमिका
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Read Part 01 : 
 
पसाकोलोजिया के पप्पा से पहली मुलाक़ात
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Ranjan Kumar
Ranjan Kumar

Founder and CEO of AR Group Of Institutions. Editor – in – Chief of Pallav Sahitya Prasar Kendra and Ender Portal. Motivational Speaker & Healing Counsellor ( Saved more than 120 lives, who lost their faith in life after a suicide attempt ). Author, Poet, Editor & freelance writer. Published Books : a ) Anugunj – Sanklit Pratinidhi Kavitayen b ) Ek Aasmaan Mera Bhi. Having depth knowledge of the Indian Constitution and Indian Democracy.For his passion, present research work continued on Re-birth & Regression therapy ( Punar-Janam ki jatil Sankalpanayen aur Manovigyan ).
Passionate Astrologer – limited Work but famous for accurate predictions.

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