जीवन की रक्षा हेतू पल पल का प्रयास और मृत्यु भी पल पल अपने आगोश में लेने को आतुर, भिन्न भिन्न रूप बनाकर .. कब कहाँ कैसे ख़त्म हो जाये ये सफ़र मालूम नहीं .. फिर सब धरा रह जाता है जिसके लिए पूरी जिन्दगी तिकड़म करते रहे और नैतिकता और न्याय के पथ को छोड़ कंकड़ पत्थरों का ढेर इकठ्ठा करते रहे !
केदारनाथ धाम की तबाही सुनामी या फिर बड़े बड़े भूकंप और लाखों लोगों की असामयिक मौत .. किसी ने एक पल पहले भी क्या इसकी कल्पना की थी ?
हर वक़्त मरने के लिए तैयार रहिये लेकिन जिन्दगी को जिन्दादिली के साथ जीते हुए सत्य और नैतिकता का दामन थामे रहिये, अच्छे का साथ दीजिये और बुरे का विरोध कीजिये .. नेक नीयत रख अर्जित धन पर जीवन यापन कीजिये .. सुकून ही सुकून है .. सच्चे अर्थों में फिर इंसान कहलाने के योग्य होंगे !
पर अफ़सोस .. इतनी छोटी सी बात भी नहीं समझ पाते जीवन भर और मोह माया और पाखण्ड में बहुमूल्य जीवन को लुटा देते हैं, पाते कुछ भी नहीं .. मरते वक़्त भी किसी की बददुआएं और हाय लेकर ही अगर गए तो फिर क्या जीना ऐसा जीवन ?
कुछ ऐसे जीकर जाना चाहिए की कोई पदचिन्ह रह जाएँ पीछे .. जिन्दा रह जाएँ लोगो की यादों में .. ये शब्द युगों से कहे जा रहे हैं,कहे जाते भी रहेंगे लेकिन जो है सब वैसे ही चलता भी रहेगा .. कुछ बदलेंगे कुछ सुधरेंगे .. और मेरा मन कहता है कहते रहो, दुहराते रहो इसे .. कोई सुने या न सुने, कोई बदले या न बदले .. तू अपनी धुन में बस कहता जा !
जो सत्य और नैतिकता के साथ वे सब मेरे सगे और जो भी अंधेरों के पोषक और अनैतिक कृत्यों में लिप्त उनसे राह अलग ..!!