
वह फिर चला गया फेंक कर
सारा दिन उजाला अपना ,
मेरे खुद के अंधेरों ने उसे
फिर से नजरअंदाज किया !
कुछ तो कह रहा था वह मुझे
डूबते वक़्त भी धीमे धीमे ,
मेरे गुमान के शोर में कुछ
भी मगर मैं सुन न सका !!
– रंजन कुमार
वह फिर चला गया फेंक कर
सारा दिन उजाला अपना ,
मेरे खुद के अंधेरों ने उसे
फिर से नजरअंदाज किया !
कुछ तो कह रहा था वह मुझे
डूबते वक़्त भी धीमे धीमे ,
मेरे गुमान के शोर में कुछ
भी मगर मैं सुन न सका !!
– रंजन कुमार