
कुंती रही होगी माँ
पर कर्ण की माँ वह कब थी ?
और सूरज ने कब निभाया,
है पिता ?
भोगना है कर्ण को प्रारब्ध ,
जो न उसने है किया
जो न उसकी है खता ?
यह आज का दस्तूर है ,
और यह तुझे मंजूर है …
तो लो समेटो दिख रहा ,
आँखों में मेरे जो तेरा नूर है !
फैसला तेरा ऐसा ऐ खुदा
मुझको नहीं मंजूर है !!
– रंजन कुमार