
स्वाभिमान और अभिमान के बीच बड़ी बारीक रेखा है एक …जागरूक रहे तो ठीक वरना कब स्वाभिमान अभिमान बन लील लेगा पूरा व्यक्तित्व यह समझते समझते बहुत देर हो जाता है…
स्वाभिमान व्यक्तित्व के निर्माण की पहली जरूरत है तो दूसरी तरफ ब्यक्तित्व के नाश की यह आखिरी कड़ी भी है अगर यह अभिमान मे बदल जाये..
ऐसे समझिये इसको इस अंतर को ..जमीन पर उगे पीपल और बरगद का अभिमान स्वाभिमान है और बोनसाई गमले मे उगे पीपल और बरगद मे वही फिर स्वाभिमान नहीं अभिमान है फिर वहाँ पर ..!
प्रयास करना चाहिए हम विवेकी बने रहें और हे लम्हा आत्मावलोकन करते रहें जिससे हम सदैव स्वाभिमान से भरे रहे और अभिमान से बचे रहें क्योंकि अभिमान पतन का कारण है जबकि स्वाभिमान एक आदर्श व्यक्तित्व की आवश्यक शर्त होती है !
इस बारीक रेखा को जो समझ जाता है वह बिना कोई मुश्किल जिन्दगी में सबका प्रियपात्र बनते हुए सफलता को प्राप्त कर लेता है जबकि अविवेकी और अभिमानी व्यक्ति मिले हुए सफलता को भी संभाल नहीं पाता और अभिमान के वशीभूत हो खुद को बर्बाद कर लेता है !
निष्कर्ष यह है की जागरूक रहते हुए आत्म-मंथन करते रहने से आप हमेशा इस समस्या से बचे रह सकते हैं और सदैव सफलता प्राप्त करने की क्षमता स्वतः आपके अंदर विकसित हो जाती है !
प्रयास करना चाहिए हम विवेकी बने रहें और हे लम्हा आत्मावलोकन करते रहें जिससे हम सदैव स्वाभिमान से भरे रहे और अभिमान से बचे रहें क्योंकि अभिमान पतन का कारण है जबकि स्वाभिमान एक आदर्श व्यक्तित्व की आवश्यक शर्त होती है !
इस बारीक रेखा को जो समझ जाता है वह बिना कोई मुश्किल जिन्दगी में सबका प्रियपात्र बनते हुए सफलता को प्राप्त कर लेता है जबकि अविवेकी और अभिमानी व्यक्ति मिले हुए सफलता को भी संभाल नहीं पाता और अभिमान के वशीभूत हो खुद को बर्बाद कर लेता है !
निष्कर्ष यह है की जागरूक रहते हुए आत्म-मंथन करते रहने से आप हमेशा इस समस्या से बचे रह सकते हैं और सदैव सफलता प्राप्त करने की क्षमता स्वतः आपके अंदर विकसित हो जाती है !
– रंजन कुमार