अब उसे कुछ भी तो
जब याद नहीं
वो बिसरी बातें ,
सोचता हूँ
क्या और क्योंकर
याद भी दिलाऊं मैं !
चाँद के पहरे में
पहरों सितारों से
करना मेरी बातें ,
लिखकर मेरा नाम
अपनी हथेली पर
मुझको दिखलाना ,
रेत पर लिख लिख कर
वो पैगाम मिटाना ,
उसके प्यार का
वह फ़साना
मैं आजतक कहाँ भूला ?
पार स्मृतिओं के
देह की दुनिया से परे
मिलेंगे जब तो बताऊंगा ,
जिन्दगी
बेनूर कटी कितनी
उससे बिछड़ जाने पर !
रूह की संवाद बस
रूह से ही हो जाती ,
तो जिन्दगी
फिर कब की ही
मुकम्मल थी !!
– रंजन कुमार