आत्माओं की अद्भुत दुनिया और भूतो प्रेतों का अस्तित्व, इस सीरीज में आपका फिर से स्वागत है!
भूत प्रेत होते हैं या नहीं होते?
इस तथ्य कि विवेचना से पहले, इन सब से पहले हमें यह जानना होगा कि जीवन क्या है और मृत्यु क्या है?
जीवन और मृत्यु, दर्शन शाश्त्र का एक सबसे अद्भुत विषय है! जीवन के बाद मृत्यु अनिवार्य है! जो जन्म लेता है, वह मरेगा.. जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु होगी.. ही होगी!
लेकिन जो अजन्मा है उसकी मृत्यु नहीं होती!
इस तथ्य को समझ कर जब हम आगे बढ़ेंगे.. तब हमें पता चलेगा कि हमने जिस शरीर में जन्म लिया है, उस शरीर कि मृत्यु अवश्य होगी!
अब हमे ये समझने कि जरूरत है कि मृत्यु के समय होता क्या–क्या है? उसके पहले हमे ये समझने कि जरूरत है.. हम जिसे जीवन कहते हैं उसका मूल तत्व क्या–क्या है?
जीवन में हमारे साथ क्या–क्या चीज़ें हैं जिसके साथ जिसको हम ये शरीर कहते हैं.. तो क्या केवल ये शरीर जीवन है?
इस शरीर के साथ और क्या–क्या चीज़ संयुक्त है.. जिसे हम संयुक्त रूप से जीवन कहते हैं.. एक जीवधारी कहते हैं?
ये समझने के लिए.. ग्रंन्थों कि ओर जब हम अपनी नज़र दौड़ाते हैं.. जब हम ग्रंथों को पलटतें हैं तब हमे समझ आता है कि मानव का शरीर जिसे हम शरीर कहते हैं, जिसे हम जीवधारी कहते हैं.. यहाँ तीन चीज़ें हमारे साथ हैं!
हमारे स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और आत्मा.. इन तीन चीज़ों के साथ मिलकर के हम जिसको जीवन कह रहे हैं, हम जिस जीवन को देख रहे हैं.. हम जो चलते फिरते.. इंसानी फितरत को देखते हैं.. एक इंसान को देखते हैं, उसके अन्दर ये तीन चीज़ें सम्मिलित हैं!
इन सब का संयुक्त रूप से नाम जीवन है! अब हमें समझना है कि मृत्यु क्या है? और मृत्यु के वक्त होता क्या है और मृत्यु के वक्त रह क्या जाता है? और चला क्या जाता है?
मृत्यु के वक्त जो रह जाता है वो है हमारा स्थूल शरीर, जो इस धरती पर रह जाता है और हम कहते हैं कि आत्मा निकल गयी.. प्राण–पखेरू जिसको कहते हैं उड़ गये!
प्राण–पखेरू जो उड़ गये.. आत्मा जो निकल गयी.. आत्मा चली गयी.. वहाँ केवल सिर्फ आत्मा ही नहीं जाती, आत्मा के साथ वो सूक्ष्म शरीर भी जाता है!
हम जब बात करते हैं.. ग्रंथों को पढ़ के मुक्ति की, तो वह उसी से मुक्ति की बात की जाती है कि स्थूल शरीर के साथ जो सूक्ष्म शरीर और आत्मा संयुक्त है.. जब मृत्यु होगी तो स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर, का आत्मा से रिश्ता ख़त्म हो गया!
अब जब स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर के बीच का रिश्ता खत्म हो गया, आत्मा शरीर से गयी.. तो वो उस सूक्ष्म शारीर के साथ गयी!
अब मुक्ति जिसे कहते हैं.. वो सूक्ष्म शरीर और आत्मा के अलग होने कि प्रक्रिया है!
जब तक वो दोनों अलग नही होंगे, तब तक आध्यात्म के मार्ग में जिसे हम मुक्ति कहते और समझतें हैं वो नही होती!
अब जिसे भूत प्रेतों कि दुनिया कहते हैं.. जिसे प्रेत योनि कहतें हैं.. उस प्रेत योनि में जो भी आत्माएँ भटक रही होती हैं.. आत्मा तो मुक्त होती है आत्मा नहीं भटकती.. पर जब तक वो सूक्ष्म शरीर के साथ संयुक्त है और उसको स्थूल शरीर नही मिला हुआ है जीवन जीने के लिए.. तब तक वो अतृप्त हो करके संसार में भटकती रहती है!
सामान्यतः नही भटकती पर अगर कुछ बहुत सारी अतृप्त इच्छाओं को लेकर के मृत्यु होती है तो हमें उन्ही इच्छाओं के वशीभूत होकर के फिर से शरीर धारण करना पड़ता है और हमें फिर धरती पर आना पड़ता है!
लेकिन जब तक नया शरीर नही मिलता आत्मा और सूक्ष्म शरीर इस धरती पर भटकता है.. जिसे हम भूत प्रेत और आत्माओं कि दुनिया के रूप में समझ सकते हैं! जिनको हम कहते हैं कि भटकती रूहें हैं.. ये भटकती रूहें वही हैं!
जिनको हम कहते हैं कि इस आत्मा को चिर विश्राम प्राप्त हो गया.. इसका मतलब है कि आत्मा और सूक्ष्म शरीर के बीच का जो सम्बन्ध था टूट गया .. जो मृत्यु के वक्त भी नहीं टूटा था.. मृत्यु के वक्त केवल स्थूल शारीर अलग हुआ था, सूक्ष्म शारीर और आत्मा संयुक्त थी!
लेकिन हमे जीवन में रहते हुए.. इतना प्रयास करना होगा.. कि हमारी कोई भी कामना शेष ही न रह जाए मृत्यु के वक्त तक.. तब तीनो चीज़ें एक दूसरे का साथ छोड़ देती हैं! स्थूल शरीर धरती पर रह जाता है, सूक्ष्म शरीर से आत्मा मुक्त हो जाती है और आत्मा पूरी तरेह से ब्रह्मलीन हो जाती है.. क्योंकि उसकी कोई कामना शेष नही रहती तो सूक्ष्म शारीर अपने आप ख़त्म हो जाता है!