तुम्हारा अक्स
अश्कों में झिलमिलाता है ,
फिर पूछता हूँ खुद से
अब तक मेरे होने का सबब ?
ये अँधेरे जो पसरे हैं
बिन सबेरों के,
इनके सूरज का बेवजह
डूब जाने का सबब ?
– रंजन कुमार
तुम्हारा अक्स
अश्कों में झिलमिलाता है ,
फिर पूछता हूँ खुद से
अब तक मेरे होने का सबब ?
ये अँधेरे जो पसरे हैं
बिन सबेरों के,
इनके सूरज का बेवजह
डूब जाने का सबब ?
– रंजन कुमार