उलझन भरी राहों पर
चलते चलते एकाएक
जो मुड़ गए ,
जो चलते थे हर कदम
मेरे साथ साथ
जो राहों में बिछड़ गए ,
मेरा यह जीवन समर्पित है
सिर्फ उनके नाम !
आकाश के तारे
तोड़ लाने का किया था वादा
कभी चाँद तारो के बीच ,
उनसे कैसे करूँ
मै कोई शिकायत
जिन्होंने दी जिन्दगी की सीख ,
मेरी ये कोमल भवनाएँ समर्पित हैं
सिर्फ उनके नाम !
रग रग़ में बन कर लहू
बरसों से
जो बहते हैं दिन रात,
जो बसते हैं दिल में
बनकर मेरी धड़कन
जो घुल चुके हैं मेरी श्वासों के साथ ,
मेरा यह जीवन
समर्पित है सिर्फ उनके नाम !
– रंजन कुमार