राजनीति का विद्रूप चेहरा ,
और
आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी
व्यवस्था …
कर रही है आह्वाहन ,
सुनो यह झूठा आर्तनाद ,
बेईमान गद्दारों द्वारा
इमानदारी का ,
अगर बहरे नहीं हो ..!
समवेद गायन भी सुनो
एक दूसरे के घुर
विरोधिओं का ,
ये लामवंद हो एक स्वर में गायेंगे ,
भ्रष्टाचार राग ..!
भ्रष्टाचार के विरुद्ध
निकले लोगो पर,
एक स्वर में ..
ये सारे भ्रष्टाचारी मिलके
भ्रष्टाचार का आरोप लगायेंगे !
संक्रमण काल है यह ,
तंत्र देश और व्यवस्था हेतू ..!
नवयुग का आह्वाहन
अगर करना है ,
निर्धारित करना होगा
अपना लक्ष्य ,अपनी भूमिका ..!
और यह भी
करना है निर्धारित कि ,
तुम किधर हो इस लड़ाई में ..
अब और चुप
निरपेक्ष नहीं बैठ सकते ..!!
– रंजन कुमार