जब उसने कह ही दिया मुझको कोई दीवाना ,
सर पर ये इल्जाम ले जाऊँ तो किधर जाऊँ !
वफा की रस्मों पर अब ऐतबार और नहीं ,
अब तो आरजू भी यही है यहीं बिखर जाऊँ !
गवाह रहना सितारों तुम उन उम्मीदों का ,
जिन्हे लिये था मैं कंधों पर जब ठहर जाऊँ !
अजीब रस्म थे समझ कभी सका न उन्हें ,
खुद को खुद मे ही समेटूँ किसी नगर जाऊँ !
कहीं तो होगा कोई शख्स मेरे ही जैसा भी ,
मिलूं मैं उससे उसकी रूह में मैं उतर जाऊँ !
उसे सहारा दूं मैं और वह भी मुझे सहारा दे ,
जिंदगी की राहों मे फिर साथ ही गुजर जाऊँ !!
– रंजन कुमार