कर्तापन के भाव से अलग होना ही असली मुक्ति है,यही हर समस्या की जड़ है क्योंकि यह भाव अति सूक्ष्म है गहरी जकड़न है,चेतना के सभी दरवाजे पर इसका पहरा है!
इसलिए कृष्ण का उद्घोष गीता में इसी कड़ी पर आकर हमे छोड़ जाता है,कर्तापन के भाव को त्याग दे..यह भाव गया नहीं कि प्रकाश तत्क्षण प्रकट होगा और जन्म जन्मान्तरों की बेड़ियाँ कट जाएंगी…
पर कर्तापन के भाव को छोड़ना सीखने में ही जाने कितने ही जन्मों का सफर लग जाता है…! जय श्री कृष्ण !
रंजन कुमार