मुझे लिहाज है
मै मौन हूँ ,
और लोग हैं गुमान में !
नासमझ और मूर्ख जान
सब लूट रहे हैं मुझे ,
मै लुट रहा हूँ जानकर
रिश्तों की मर्यादा रहे !
सोचता हूँ
कब तक ये निभ पायेगा …
जब सोच ही है अलहदा ,
मंजिलें ही हैं जुदा ?
और मौन तोड़ा मैंने गर ,
फिर कौन मुंह दिखायेगा
और कौन मुंह छिपाएगा ?
मुझे लिहाज है
मै मौन हूँ ,
और लोग हैं गुमान में !!
– रंजन कुमार