एक सच्ची बात बताऊं तुम्हें,
पाखंडी सिर्फ और सिर्फ
एक पाखंडी होता है…!
न इससे एक अक्षर कम
न ही एक अक्षर भी ज्यादा ..!
न वह सच्चा होता है
न ही वह झूठा होता है…
मक्कारी से भरा हुआ,
अपनी काल्पनिक छवि के
प्रदर्शन में रातदिन रत….!
पाखंड एक मानसिक व्यभिचार है,
इसलिए पाखंडी को,
बेझिझक
व्यभिचारी भी कह सकते हो!
दुनिया मे हर किसी का
एतबार कर सकते हो,कर लेना..
पर एक पाखंडी पर भरोसा,
किसी युग किसी काल मे न करना…
देश काल की सीमाओं से परे,
यह सार्वभौमिक सत्य कहा है मैंने..
एक और सच्ची बात बताऊं तुम्हें..
न वह गृहस्थ होता है
न ही वह कोई सन्यासी होता है
पाखंडी तो सिर्फ पाखंडी होता है..!
रंजन कुमार