Light in dark night
जलता रहा मैं रात भर
चिराग बन बन के,अंधेरों में 
पल पल हरपल सहर होने तक 
बस तुझको राह दिखलाने के लिए !
अब जब सुबह की आभा 
फूट रही है देखो दूर वातायन में ..
बुझा ही तो दोगे तुम मुझे ,
चलो बुझा दो फिर रात तक के लिए ..!
सो जाने दो चिर निद्रा में मुझको ,
मगर फिर अंधियारा छाएगा जब 
मेरी जरूरत तब होगी तुमको ,
पुकारना , फिर लौटूंगा ,दीप हूँ मै !
 
एक दीप हूँ मै,इन अँधेरी रातों का 
यही किस्मत है दीप की,
अंधेरों में जिसकी कदर थी खूब 
दिन होते ही वह बुझा दिया जाता है !!
– रंजन कुमार 

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