मेरे हिस्से में भी तो था
एक सूरज !
जो डूब गया असमय
जिसे डुबो दिया शातिरों ने,
मैं ढूंढ रहा हूँ उसे
इस घने अँधेरे में ..
हाथ में जलती चैली लिए ,
जिसे श्मशान की
जलती चिता से उठाया है मैंने !
अब या तो मेरा सूरज
मुझे वापस मिलेगा ,
या चिता कि जलती इसी चैली से
फूँक दूंगा मैं ..
उन सब रावणों की लंका..
जिनके स्वर्ण महलों में
मेरा सूरज कैद है !
– रंजन कुमार