कृत्रिम संवेदनाओं के
बोझ मे डूब के,
एक दिन साहित्य तुम्हारा
आत्महत्या कर लेगा,
एक कलम
चंगुल से आजाद हो लेगी,
कुछ शब्द मुस्करा उठेंगे फिर ..
और इकट्ठा हो शब्द सारे वह
स्वाधीनता दिवस मनाएंगे,
तुम तब भी
जलेबियाँ बांट रहे थे वहां,
तस्वीरें बोलेंगी
उस दिन भी ,, यकीन है मुझे ..!!
– रंजन कुमार