पसाकोलोजि भौजी के छोटकी बहिनी शिम्पिया का गणित ज्ञान

पसाकोलोजि भौजी की सबसे छोटकी बहिनी मैथ में बहुते तेज है! मैथ के उस्ताद फरोफ्रेसर जीजा ने ऐसी ट्यूशन दी है अपने पास ला के रात रात भर कि शिम्पिया दो और दो चार नही ,पाँच जोड़ना सीख गयी है.. और एक और एक मिलाके दो नही होता है, ग्यारह कैसे होता है यह भी उ सीख गयी है फरोफ्रेसर  जीजा से.!
 

पसाकोलोजि भौजी को सब घर में चिम्पिया कहके बुलाते हैं बचपन से क्योंकि एकदम से हू ब हू चिम्पैंजी जैसा मुंह लगता था बचपन से ही हमारी पसाकोलोजि भौजी का.. तो टोला मोहल्ला वाला सब चिम्पिया चिम्पिया कहना शुरू कर दिया.!

 
और फिर चिम्पिया की दूसरी बहन हो गयी डीम्पिया, तीसरी वाली हो गयी पिम्पिया और चौथी हो गयी शिम्पिया!
 
चौंकिए मत घर में ऐसे ही नाम धर देते हैं लोग गाँव में बिहार के!
 
जैसी शादी के बाद हर लडकी का नाम पहचान बदल जाता है वैसे ही चिम्पिया का भी बदल गया.. उ हो गयी अब पसाकोलोजि.. गाँव जेवार में फेमस.. पसाकोलोजि.!
 
पसाकोलोजि विषय से एम ए कर ली.. बहुते बड़ी उपलब्धि हासिल हुआ.. खानदान में पहिली लइकी है जो पसाकोलोजि से एमए किहिस भाई..
 
छीले हुए सफाचट मूंछ पर अपने ताव दे लेते हैं अक्सर पराजित मिसिर यह सोच सोच के.. अब वो भी चिम्पिया नहीं पसाकोलोजि बुलाते हैं अपनी पहली बिटिया को.!
 
पसाकोलोजि बोलते हुए मुंह गर्व से फूलने लगता है, होंठ फडकने लगते हैं और नथुना पराजित मिश्र का फदफदाने लगता है..
 
ऐसे में जब देख लें मिसिर जी की मिसराइन अपने तिरछे चितवन से उनको तो पराजित मिसिर का प्रेम का घोड़ा हिनहिनाने लगता है.. इत्ता बड़ा पराक्रम किये पराजित मिसिर मिसराइन संग मिलके.. पसाकोलोजि भौजी के पिता बनने का सौभाग्य पाए.. बहुते उपलब्धि प्राप्त हो गयी पसाकोलोजि भौजी के कारण इ जन्मजात जुआरी पप्पा को.!
 
वैसे पसाकोलोजि भौजी की मम्मी भी कम फेमस नही रही हैं जिला जेवार में.. नाहर (नहर) पर पुल के उपर चढ के जब उ माघ के महीना में छलांग लगाती थी नाहर में अपने मायके में माघ नहाने के लिए  6 बजे सुबह तो उस वक्त जिला जेवार के लोग दूर दूर तक से आने लगे थे नाहर किनारे इ नजारा देखने.!
 
इ बहुते संस्कारी माघ नहाने वाली जलपरी को नहाते देखने लोगों का हुजूम उमड़ता था तब.. कम से कम बारह बार छलांगे मारती थी पराजित मिसिर की मिसराइन पुल पर से नाहर में सब वस्त्र उतारके .केवल अन्तः वस्त्र में अपने.. माघ  का पक्का मेला लग जाता था नाहर किनारे.. फुसरी गाँव से जहाना जाने वाली गाडी में तो बस में भर भर के लोग पहुंचते थे फुसरी से सुबह सुबह …रमेश और उमेश बबुआ तो सत्यानन्द गाडी पर लटक जाया करते थें चिल्लाते हुए.. चलो ममानी को देखेंगे.. मेला चलो मेला..
 
श्याम बाबू राम बाबू और गुरूजी तो सत्यानन्द बस के छत पर चढ़ के बैठ जाते थे..और तब सबको जाते देख इ किरानी पूत माया नंदन आज के फरोफ्रेसर का भी दिल मचल मचल जाता था ममानी मेला जाने के लिए.. ममानी मेला के नाम से प्रसिद्ध हो गया था उ मेला उनदिनों माघ के महीने में.!
 
ए ओमकार! उहाँ तो चिनिया-बेदाम के ठेला के ठेला लगे लगा था नाहर किनारे.. आ आज की पसाकोलोजि भौजी तब 3 साल की थी.. उ अपनी फ्रॉक में सब ठेलिया वाले से मुफ्त के चिनिया-बेदाम की उगाही करती थी अपने मामू के संगे.. वही मामू संगे बबुआ जो मर्डरवा के केस में फंसा था बाद में.. पूरे संस्कारी घराना है पसाकोलोजि भौजी का, जिधर नजर डालिए ओनहीं से संस्कार मध जैसा टपाटप टपक रहा है !
 
तुतलाती हुयी बोलते चलती थी तब आज की हमारी पसाकोलोजि भौजी.. हमरी मम्मी के कारण न छब आये हो.. चलो.. बेदाम डालो बेदाम हमारी फ्राक में.. भर दो इसको.. तबहीं से लत लग गया भौजी को चिनिया बेदाम फोड़ फोड़ खाने का..और यही चिनिया बेदाम को बादाम समझने का भूल  कर बैठी पसाकोलोजि भौजी हमारी.. मालूम ही नहीं पड़ा साला अम्न्डवा वाला बादाम कुछ अलग होता है.. कभी कौनो बताइस ही नहीं.!
 
देखने को मिला ही नहीं वादाम तो चिनिया बेदाम को ही बादाम समझती रही जिन्दगी  में आजतक.. उ तो रोमांटिक देवर ने भौजी को बादाम और चिनिया बेदाम मूंगफली का फर्क समझाया  बिआह बाद उसके.!
 
पसाकोलोजि ने नाम रौशन कर दिया सबका.. आखिर उसी मम्मी की बेटी हैं.. नाम तो करना ही था.. पूत के पाँव पालने में ही दिखने लग गये थे.. उम्मीद भी थी मिसिर जी को कि एकदम से धाकड़ और बिंदास निकलेगी बिटिया हमारी.. पापा जुआ खेलते थे जब तो पसाकोलोजि भौजी गाँव के आवारा छोकरों संग कंचा खेलते मातल चलती थी दिनभ.. और जब बहुते खोजबीन होवेगा तो मिलती थीं उ सौरभवा के संग केतारी (गन्ना) के खेत में.. गन्ना के गुल्ले में लपेस लपेस मोमोज वाली चाटनी चाटते हुए.. गन्ना के गुल्ले में लपेस लपेस मोमोज की चटनी चाटना पसाकोलोजि भौजी की सबसे फेवरेट डिश है.. बचपने से ही.!
इ तो था संक्षिप्त परिचय हमारी पसाकोलोजि भौजी का.. तीन और पुत्रियाँ बाकी हैं पराजित मिसिर के, इनके कारनामों पर भी उनको खूब भरोसा है.. ये सब मिलके खूब नाम रौशन करेंगी बाप दादा का.. वैसे ही जैसे पसाकोलोजि  ने किया.. तो  ये हुयी जनाब  पराजित मिश्र की चार पुत्रियाँ.. सब एक से बढ़ के एक.!
 
चलिए लौटिये वहीं कहानी पर.. शिम्पिया की गणित पर.!
 
तो हम बता रहे थे कि.. और तो और.. फरोफ्रेसर जीजा की फेवरेट साली है शिम्पिया तो फरोफ्रेसर ने मौक़ा ए वारदात से नौ दो ग्यारह होना भी बहुत अच्छे से सीखाया है शिम्पिया को.. पसाकोलोजि भौजी की क्या मजाल जो पकड़ ले कभी.! आजतक पकड़ पायी का.??
 
तो आज बतिया रही थी शिम्पिया पिम्पिया से.. कन्फ्यूज मत होइए.. पिम्पिया माने तीसरी नम्बर और शिम्पिया चौथी नम्बर.. पसाकोलोजिया के  बियाह के देखो 6 साल हो गया और अभीतक डिमपिया के बिआह का कोई ठिकाना नही है.. हर साल सुनती हो न.. जुआरी पापा से.. कि इस साल निपटा देवेंगे.. और फिर कान में तेल  डाल के सूत जाता है सब, और पप्पा हमलोगों का भैया दुनिया में ले आवे के जिद ठानले हैं त वही फिराक में लग जाते हैं अपने.. और साल गुजर जाता है!
 
मौसम पर मौसम बदलते चला गया बिआह शादी के.. लेकिन एगो लइक़ा नही मिला इ सबको.. फरोफ्रेसर जीजा भी देखो कुछ नही किया कोई दूल्हा नहीं खोज लाया.. एगो लइका नही खोजाया इ सब से.. हमनी दोनों के लिए और दू गो कब खोजेगा सोची हो कभी ?
 
हम तो सोचते हैं तो हमारा पूरा पूरा ब्रह्मांड ही  हिलने लगता है !
 
पापा डींग हांकते थे न ..अब का चिंता ..सब तो अब दमाद बाबू कर ही देवेंगे ..पापा को बहुते उम्मीद था इ फरोफ्रेसर जीजा से ..शिम्पिया गुस्से में तेज तेज बोले ही चली जा रही थी पिम्पिया से ..कुछ नही किया इ बकलोल  जीजा ..गिफ्ट दे दे के थोड़ी थोड़ी सी हमको …अपना टेढा हुआ उल्लू को सीधा कर  लेता हैं  हरामी साला ..और टेबलेट दे के फरार हो जाता है ..खाते रहो फिर वांटेड अनवांटेड उसका दिया हुआ ..!
 
बोले जा रही थी शिम्पिया ..”और वो जो गिफ्ट मिला हमको टीवी और मोबाइल इ सब के बदले ..वह भी क्या केवल हमारा हुआ ..सब लोग घर में मिलके टीवी देखते हो ..सब उसी मोबाइल में लगल रहती हो दिन रात जो हमको फरोफ्रेसर जीजा दिए थे ..हम देह रटाये अपना और तोहनी सब मिलके पूरा घर उसमे मस्ती मारते हो ..हमको विशेष का मिला ज़रा पूछेंगे इसबार फरोफ्रेसर जीजा से ..! और मम्मी न हमारी …वो और अगिया -बैताल है ..कह रही थी हमको  अबकी जाना तो फरोफ्रेसर जीजा से मिक्सी और वाशिंग मशीन मांगना ..मुंह बंद है सबका ..पापा का मम्मी का ..फिर ले जाएगा हमको उ और इनको कोई दिक्कत उक्क्त तो होगा नहीं  ..और फिर जीजे की जायज नाजायज सब ख्वाहिशें पसाकोलोजिया से छुप छुप के पूरी करते रहो ..क्योंकि मिक्सी और वाशिंग मशीन अभी घर में आना बाकी है ..और जीजा ऐसे तो देवेगा नहीं ..जबतक खुश न हो हमसे ..और उसकी ख़ुशी के लिए जो करना पड़ता है न तुम सब के खातिर हमको उ बहुत गंदा लगता है ! “
 
अब शिम्पिया ने अपना गणित का ज्ञान खोला पिम्पिया के सामने ..पसाकोलोजिया के बिआह हुआ फरोफ्रेसर जीजा से तो पसाकोलोजि 22 साल की थी और जीजा खोज लाये पप्पा 38 का ..अब उसके 6 साल बाद भी डिम्पिया का नम्बर नही आया बिआह का ..और वो हो गयी अब 26 की ..तो इस हिसाब से इसमें चूँकि और इसलिए वाला मैथ के अंकगणित का चैप्टर लगाओ अब ..मान लो हो गया भी इस साल तो अबकी जीजा आयेगा 42 का , फिर  जबतक पिम्पिया तुम्हारा नम्बर आयेगा और उसके 6 साल बाद तो तुम रहोगी 30 की और पप्पा जीजा खोज लायेगा 46 का ..और जरा हमरी सोचो ..फिर उसके भी 6 साल बाद हमरी बिआह होगा तो हम होवेंगे 34 की और हमरा मरद खोज लावेंगे तब पप्पा 50 का ..और इत्ते दिन घर में विस्तर में पड़े 6 लोगों की देखभाल करते रहो दिन रात ..!
 
शिम्पिया समझा रही थी पिम्पिया को ..हमको तो भविष्य ही अपना यहाँ अंधकारमय लगता है ..बारह  तेरह साल इन्तजार करने पर भतार मिलनेवाला है पप्पा की तरफ से 50 वाला ..इ हमको तो नहीं चलेगा बहिनी …तुम अपनी सोचो ..जीजा ने गाना सीखाया है हमको ..एक बार जो जाए जवानी फिर न आये ..चलो हमलोग खोज लें खुद ही अपने लिए कोई न कोई जुकुत दूल्हा मोशरमा के मेले से ..हरे लगे न फिटकिरी ..रंग चोखा हो जाएगी दिदिया ..इनको छोडो इनके हाल पर ..चलो भाग चलें पूरब की और ..!
 
दोनों बहने अब खुल के हंसीं ..पिम्पिया बोली ..रोमांटिक देवर पसाकोलोजिया के बहुत अच्छे हैं ..उ कोई अपने नजर से अच्छा दूलहा हमलोगों को भी बता दें शायद जिसे हमलोग अपने संग ले के भाग सकें ..चलो उन्हीं से सब बात बताते हैं इ ..पसालोजिया का भी बियाह वही न करवाए आखिर ..न त अबतक पसकोलोजिया भी कुआरें ही रहती ..!
 
पिम्पिया और शिम्पिया ने पसाकोलोजि भौजी के इस रोमांटिक देवर से अपनी गोहार लगाई है इ कहते हुए की इसको गुप्त रखा जाए ! चिंता मत करो फरोफ्रेसर भैया की सालिओं ..गुप्त रखते हुए मिशन को हम आपके दूल्हें को जरुर खोजेंगे ..
 
इ उसी का इश्तहार है ..कैसनो दूल्हा चलेगा भाई..ना उम्र की कोई सीमा है न जात का बंधन ..न इसकी ही मांग है की संस्कारी ही चाहिए ..दुल्हन खुद ही सब गुण से आगर है ..50 से उपर वाले को प्राथमिकता मिलेगी ..रिजर्व कोटा है उ ..पचास के उपर के दूल्हे पर पराजित मिसिर भी हाँ की जल्दी मुहर लगा देवेंगे क्योंकि उनको अपने बेटियो के लिए बहुते बडका दूल्हा पसंद है ..अबकी बार  फरोफ्रेसर  से भी बडका चाहिए .. अपनी अर्जियां लगावें इ इश्तहार पर  ..शिम्पिया देख नही रहे गाना गा रही है ..एक बार जो जाए जवानी फिर न आये ..!
 
कोई यह पराजित मिसिरवा को भी समझाओ जरा ..अभी भी बेटा के फेर में पडल है .. उ बेचारी शिम्पिया गाना गा गा कर समझा रही तब भी नहीं समझ आ रहा ..”एक बार जो जाए जवानी फिर न आये ..!!”
 
#पसाकोलोजि_भौजी and #फरोफ्रेसर_पुराण  उपन्यास से संकलित 
 
 

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Ranjan Kumar
Ranjan Kumar

Founder and CEO of AR Group Of Institutions. Editor – in – Chief of Pallav Sahitya Prasar Kendra and Ender Portal. Motivational Speaker & Healing Counsellor ( Saved more than 120 lives, who lost their faith in life after a suicide attempt ). Author, Poet, Editor & freelance writer. Published Books : a ) Anugunj – Sanklit Pratinidhi Kavitayen b ) Ek Aasmaan Mera Bhi. Having depth knowledge of the Indian Constitution and Indian Democracy.For his passion, present research work continued on Re-birth & Regression therapy ( Punar-Janam ki jatil Sankalpanayen aur Manovigyan ).
Passionate Astrologer – limited Work but famous for accurate predictions.

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