दिल मे आता है पूछ लूं
इन उदास आँखों मे
तैरती , पसरी सी
और लबों पर
दशकों से बिखरी
खामोशियों का सबब,
लेकिन डरता हूँ
मेरी ये हिमाकत
तेरी इस नैसर्गिक
सुंदरता को सदा के लिए
कहीं नष्ट न कर दे ..
हां तुम उदासी मे घिरी
सौंदर्य की एक जीवंत मूर्ति हो..
इसलिए अपलक
जब जी चाहे तुम्हे निहार लेता हूँ ,
मोहब्बत का,फिक्र की
एक यह भी तो अंदाज है
तुम्हे नैसर्गिक धारा मे
बहता छोड़ दूँ
और में भी सदा के लिए खामोश रहूं !!
– रंजन कुमार