मार्ग पर बुद्धत्व के
प्रियतम गए तुम ,
मुझको कहो मेरा मार्ग क्या
और अभीष्ट क्या ?
मार्ग में आड़े क्यों आया
पिता का फर्ज
और दायित्व भी पति का ?
छोड़कर मझधार में
हमको अकेले
बुद्धत्व क्या तुम पा सकोगे ?
बूढ़े पिता पर राज्य छोड़ा ,
मुझ अबला पे छोड़ा ..
माँ और राहुल ..!
दोनों बड़ी है जिम्मेदारी ,
जो तुमको उठानी चाहिए थी ,
स्वार्थ क्यों न कहूँ इसे
तेरा कहो ये ?
निर्वाण तुझको मिल भी जाये
अगर तो
उससे भला अब क्या हमारा ?
पर अनुगमन तेरा करुँगी ,
नहीं कोसती लो ,
अब सब हंसकर सहूंगी ..
प्रियतम गए निर्वाण हेतू ,
सालेगा मन पर ,
सबको हंस हंस कहूँगी ,
हाँ अनुमति ली है हमारी !
मन के मेरे जो भी हैं शंशय
एक बार आओ ,
स्वप्न में ही दूर कर दो ,
और मुझे इतना बताओ ..
मार्ग पर बुद्धत्व के
प्रियतम गए तुम ,
मुझको कहो मेरा मार्ग क्या
और अभीष्ट क्या ?
– रंजन कुमार