सुनो जानम,
मैने तुम्हें मोहब्बत में
कभी चाँद का
टुकड़ा नहीं कहा..
क्योंकि
आसमान का वह चाँद
बेनूर है,बे नजाकत है
मगरूर है..!
वह तो बेवजह ही
सिर्फ
दिलजलों के कारण
धरती पर मशहूर है..!
तेरी आँखों की
सब मस्त शोखियाँ,
ये बेपनाह हुस्न,
नजाकत,ये अदाएं,
उठती और गिरती
पलकों की ये चिलमनें,
तेरी पलकों में लिपटी
काजल जैसे ..
आसमां की आकाशगंगाएं..
इसलिए बेझिझक
कहता हूं मैं
उस चाँद की
क्या हस्ती है…
तू एक चाँद का
टुकड़ा भर ही नही मेरे लिए ..
बल्कि वह चाँद आसमान का,
महज एक टुकड़ा भर है
तेरा हमदम… !!
रंजन कुमार
(सप्रेम सस्नेह आज 08 मई 19 को शादी की अपने 24वीं सालगिरह पर भेंट अपने जीवन सहचरी सुश्री अल्पना मिश्रा जी को)