“कबीरा खड़ा बाजार में, भूंकत स्वान हजार…! ” इस कहावत को इस तरह से समझता हूँ मैं ..कबीर बाजार में खड़ा होंगे तब हजारों स्वान भूकेंगे ही…इन स्वानो के भूँकने से ही कबीर की आहट मिलेगी जमाने को अब ..!
स्वान भौंकते ही उस पर हैं जो सबसे हट के अलग करने आया कुछ और कबीर तो हर दृष्टि जो डालेगा वह नजर अलग होगी नजरिया अलग होगा…!
तो फिर …वही तो…कबीरा खड़ा बाजार में भूंकत स्वान हजार….कबीर की आहट है तो स्वानो खूब भौंको… जोर जोर से भौंको….तमीजदार सलीकेदार हायर सोसायटी के स्वानों तुम भी भौंको ..हराम की खाओ
और भौंको ..कबीर खड़ा है बाजार मे ..!
तुम्हें यकीन ही नही हो रहा होगा कबीर को देख..कोई ऐसा भी है ? हो भी सकता है भला ..? कबीर को समझने के लिए इंसानो के गर्भ से इंसान बन आना होगा तुम्हें स्वानों ..!
कुतिया के गर्भ से पैदा हुए कुत्ते हो तुम-सब स्वानों जो सिर्फ भौंक सकता है कबीर को समझ नहीं सकता तो हैरान है सब ..ये कौन सी भाषा बोल रहे कबीर ..? समझ नहीं आ रहा स्वानों को चाल चलन चेहरा चरित्र कुछ भी नहीं ..क्योंकि कबीर कबीर है स्वान बुद्धि की पहुंच कबीर तक कैसे हो ..?
तो फिर स्वानों के पास उपाय क्या है इसके सिवा कि वो भौंके आपस में और चर्चा करें ..ये कौन आ गया है इधर ..कबीर की आहट है बीच बाजार से कबीर गुजर रहे अभी ..स्वानों तुम भौंको और जमाने को खबर दो ..तेरे भौंकने से जमाने को कबीर की आहट लगेगी अब ..!