कब कहा था तुमने
यह सफर दुरूह इतना होगा?
सरल और सहज था
यह कहना कितना
चलना सत्य की डगर.!
जिसको सच कह दो
वही बिदकता है,
और सच न कहूँ तो
खुद की आत्मा लहूलुहान होती है!
ये गहन संघर्ष पथ है
और जब अब तुम भी नहीं साथ
तो एकाकी भी हूँ और तनहा भी!
थक रहा हूँ अब लड़ते लड़ते
चुक रहीं हैं साँसे भी,
कई बार इन अंधेरों में
नहीं दिखती मुझे
तुम तक जाती कोई राह भी,
मज़बूरी मगर अब ऐसी है
चाहूँ तो भी कदम नहीं बढ़ते..
सत्य को झुठलाकर गढ़े गए
असत्य को सत्य बता
प्रमाणित करने हेतू!
अब तो आखिरी सांस तक
देखना है आजमा कर मुझे,
सत्यमेव-जयते का वह उद्घोष
क्या आज भी सच है?
जिसको भी आजमाया इस जग में
वही झूठ का पुलिंदा निकला,
परीक्षाएं मैं दे चूका
अब तुम्हारी बारी है,
कब कहा था तुमने
यह सफर दुरूह इतना होगा?
देखना है आजमा कर मुझे,
सत्यमेव-जयते का वह उद्घोष
क्या आज भी सच है?
– रंजन कुमार