साथी!
तुम बांध सकोगे ?
किसी बन्धन में मुझको?

मैं दूर गगन का
मस्तमौला पंछी…
परमहंसों की जमात से
बिछड़ा एक हंस…

आवारगी में आ गया हूँ
भटकते तेरी दुनिया मे..
तुम बाँध सकोगे,
किसी बन्धन में मुझको साथी?

रहने दो स्वछंद,
जो मिल जाए,जितना मिल जाए
प्रेम वह समेट लो,
इस धरा पर…

यह धरा अपनी नहीं है
यह गगन अपना नहीं है…
चिर मिलन गर चाहते हो,
वह मिलन कहीं और होगा..

दूर तक चलना पड़ेगा
कांटो में पग रखना पड़ेगा
झाड़ें बबूल की
राहों में बिछी हैं जो पग पग
रौंदना इनको पड़ेगा..

सूलियों पर सेज अपनी
वह भी वरण करना पड़ेगा…
फिर बंध सकूँगा
पाश में किसी प्रीत के मैं…

साथी…
तुम बाँध सकोगे
किसी बंधन में मुझको..?

– रंजन कुमार

Similar Posts