दुनिया के थपेडों से
घायल हो ज़िस्म फिर भी,
रूह की पाकीजगी को
यूँ नूर से रौशन रखना !
रूह से जुड़े हों रूह के जो
वो रिश्ते नहीं मरा करते ,
फिर मिलेंगे ..
सफर में कहीं, अनंत के ,
चलते रहो ..
अभी तो सफर लम्बा है !!
– रंजन कुमार
दुनिया के थपेडों से
घायल हो ज़िस्म फिर भी,
रूह की पाकीजगी को
यूँ नूर से रौशन रखना !
रूह से जुड़े हों रूह के जो
वो रिश्ते नहीं मरा करते ,
फिर मिलेंगे ..
सफर में कहीं, अनंत के ,
चलते रहो ..
अभी तो सफर लम्बा है !!
– रंजन कुमार