वैसे तो वो पोस्ट ऑफिस का एक मामूली सा किरानी ही था लेकिन बड़ा बाबू कहलवाना ज्यादा पसंद करता था वह .. वैसे वह खुद भी कहा करता है कि जब सौ हरामी मरते हैं तब कहीं जाकर कोई एक किरानी पैदा होता है .!
यह कथन वैसे वह अन्य विभागीय किरानिओं के लिए प्रयोग करता था जिनके पास उसका कोई दो नम्बरी काम अटक जाता था, उनकी इमानदारी के कारण तब खीझ में वह उनको गालियाँ देता है ऐसा .. लेकिन सच तो यह था कि यह कथन उसका उसपर ही हूबहू लागू होता था .. वह जैसा खुद है अंदर से वैसी ही नजर से वह पूरी किरानी विरादरी को देखता आया है!
इसलिए खुद किरानी होकर भी सभी किरानी उसे दो नम्बरी ही लगते आये जीवन भर .. किसी भी विभाग के किसी किरानी को वह भरोसेमंद नहीं मानता कभी क्योंकि इसने खुद आजतक केवल सबका भरोसा ही तोड़ना सीखा है और हर मुमकिन तरीके से दो नम्बरी पैसा कमाना ..!
वह सौ नहीं शायद दो सौ हरामिओं के मरने के बाद पैदा हुआ किरानी था मद में चूर और मगरूर .. मगर शराफत की चादर ओढ़े हुए खुद को शरीफ दिखलाता सा .. इस पुस्तक में छोटी छोटी घटनाएँ इस बड़ा बाबू की रखूँगा आपके बीच कहानी के क्रम को बुनते हुए उपन्यास की शक्ल में ..! स्थान और पात्रों के नाम बदल दिए गये हैं जो किसी जीवित व्यक्ति से साम्यता नहीं रखते ..अगर कहीं कोई साम्यता मिले तो इसे लेखकीय कल्पना से मिलता जुलता संयोग मात्र ही समझा जाय क्योंकि जिस चरित्र से यह उपन्यास प्रेरित है उसके कोई भी किरदार अब जीवित नहीं हैं ..! कहानी सच्ची है मगर पात्रो और स्थान के नाम को बदल दिया गया है !
एक सफेदपोश शख्स का जिया हुआ गन्दा जीवन …एक मात्र मकसद इसे लिखने का कि लोग समझ सकें सामने आज जो दिख रहा है इंसान वही हो सच में ये अक्सर नहीं होता …यह बड़ा बाबू अंदर से चरित्रहीन,भंडवा और दल्ला …बेशर्म इतना की रंडी के कोठों पर बैठनेवाले दल्ले भी फिर इससे ज्यादा चरित्रवान लगने लगेंगे जो इसका सच्चा चरित्र जान लें ..यकीन करना मुश्किल होता है अक्सर देख के ऐसे शख्स को कि उसका असली चाल चेहरा चरित्र कुछ और भी हो सकता है …जैसा इस डाकघर के बड़े बाबू का है …और ऐसे दोहरे चरित्र वाले लोग हर घर में हैं ..
पढ़ते रहिये उपन्यास बड़ा बाबू धारावाहिक रूप में ब्लॉग पर अभी जो जल्द ही किताब बनके भी उपलब्ध होगी !!
– रंजन कुमार