अपना मुस्तकबिल तो 

रख दिया था 
तुम्हारी देहरी पर ही 
चलते चलते !

अब कहीं भी पहुंचू

सुकून होगा ये,
कि मेरे कर्मों ने ही दिया 
जो भी दिया !! 

– रंजन कुमार

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