ये झंकृत मन और यह
झंकृत तन,
तूने ही तो माँ मुझमें
अनुनाद भरें हैं…
दुर्गम है पथ
पर तूने ही थाम रखा है,
उस कृपा के दमपर ही तो
अबतक
हम भी डटे रहे हैं ..
सारी प्रकृति में तू ही है जब,
किसकी भला परवाह करूँ मैं
हर तरंग में संदेशा तेरा,,
नाद नाद में वीणा झंकृत..
कदम कदम तू उँगली थामे,
डगर डगर तू मुझे संभाले..
मेरा क्या है इन राहों में
यह जीवन माँ तुम्हें समर्पित .!
रंजन कुमार 30.01.2020
वसन्त पंचमी