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वह सिर्फ 

सफ़र नहीं था, 
हमसफ़र ..
युगों की थी 
दास्ताँ अपनी ..!

जिनके बीच की 

राहें और चौराहे ,
अब दस्तावेज हैं 

आनेवाले 
कल के लिए ..!

तुम थे , मैं था ,

फिर हम थे ..
और अब, 

न तुम हो न मैं हूँ ..
और न ही हम ठहरे !

सब राहें लहूलुहान हैं ,
पर जो इबारत लिखी है 

मोहब्बत की,
देखो उधर …
अब भी देदीप्यमान है !!


– रंजन कुमार

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