cold nights

सर्द रात में 
यूँ ही जो,
ठिठुरते तारों को देखा 
जब आसमान में ,
थम गए शोर 
तेरी यादों के चाँद, 
अचानक ही 

लहू जम जाए 
जिस सर्दी में 
ये किसने उतार कर 
बिछा दिए 
इन्हें जमीन पर 
उस सड़क किनारे बोलो ?

चिथड़ो में लिपटे 

जिस्मों में 
ये नन्हें सितारे 
क्यों उतरे आखिर 
धरती पर भला ?

किसने रचा ये 

जाल आखिर ?
किसने करे 
षड़यंत्र इनसे ?
किसने बुलाया 
और इनको कौन लाया 
इस जमीं पर ?

प्रश्न कई है,

अनुत्तरित मेरे,
तुम भी खोजो चाँद 
जवाब इसका
आज की रात,
मैं भी बेकल
खोजता हूँ !
 
– रंजन कुमार

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