पूरी गीता का संदेश महाभारत में सिर्फ इतना ही है कि अधर्म और अनीति पर चलने लगे लोगों के बीच खड़े होकर तुम मौन तमाशा मत देखो,उसका प्रतिकार करो ..जितना कर सको उतना प्रतिकार करो और देखोगे नियति तुम्हारे साथ हो गयी प्रकृति का कण कण तुम्हारे साथ हो गया न्याय और सत्य की स्थापना हेतू ..यही सृष्टि का क्रम है !
अन्याय करना ही केवल पाप नहीं वरन अन्याय को मौन होकर सहना उससे भी बड़ा अपराध है ! इससे अधर्मिओं का मनोबल बढ़ता है अगर उनको उनके कर्मों की सजा न मिले !
अधर्म करते अन्याय करते लोगों की बीच अगर पता चले उनमें एक दिन कोई बहुत अपना है मेरा जो गलत कार्यों में संलग्न है तो भी यह दायित्व है उसे रोको,समझाओ और न समझे तो उसे फिर उसके अंजाम तक पहुंचाओ ,संरक्ष्ण मत दो फिर उसके कर्मों का सब जानकर भी फिर मौन होकर ..!
तुम्हारे कितने भी अपने क्यों न हो सामने तुम्हारे कितना भी सगा क्यों न हो अन्याय के विरुद्ध तुम धर्म-युद्ध का विगुल बजाओ और सामने खड़े हो जाओ,कृष्ण का एकमात्र सन्देश यही है महाभारत का अगर इसे तत्व रूप में समझो !
एक आश्चर्यजनक तथ्य बताता हूँ महाभारत सदा होती ही उन अपनो से है जो तुम्हारे सामने अधर्म के साथ खड़े हो जाएं ..! महाभारत दूसरों से नही होती हमेशा अपने उन सगों से ही होती है जो तामसिक बुद्धि के प्रभाव में गलत कार्यों में संलग्न हो अन्याय का पथ अपनाते हैं अपने नाजायज इच्छाओं की पूर्ति के लिए ..!
सिर्फ कौरवों में दुर्योधन और दुशासन ही दोषी नही था केवल ..वह पूरी सभा दोषी थी जो चीरहरण पर मौन थे सभा मे ..तो जो अंत उन सबका हुआ वही अंत आज भी होगा ..सभी धृतराष्ट्रों का सभी गान्धारिओ का,सभी पितामहों का जो मौन हो दुर्योधनों के साथ खड़े है अपने ..! दुर्योधन के साथ खड़े होनेवालों अपने अंजाम को पढ़ तो लो इतिहास में !
वास्तव में दुर्योधन से ज्यादा दोषी तो उस वक्त वहाँ मौन साधने वाले कुकर्म देखते वह सब महारथी थे जो समाज में आदरणीय थे ..इन्होने अन्याय पर मौन साधा और चुपचाप देखते रहे वह सब होते हुए,जबकि इनका दायित्व था उसे रोकते ..और वह सब उसे होने से रोक पाने में समर्थ भी थे !
इन्होने जब अपना धर्म नहीं निभाया तब इनका सर्वनाश कर देना नियति का क्रूर निर्णय तब भी था, इसलिए महाभारत हुआ ..यही निर्णय वक्त बार बार हर बार करेगा ..जब आप अपना दायित्व नही निभाते तब प्रकृति रास्ता खुद तलाश लेती है न्याय की स्थापना का ..!
अगर अन्याय किया गया और प्राकृतिक न्याय को दबाया गया तो निश्चित जानिये यह एकदिन विस्फोटक रूप में सामने होगा फिर,और महाभारत फिर वक्त की नियति होगी,और उसे कोई रोक नहीं सकेगा फिर !
कुकर्म कितने ही परदे में छुपाकर क्यों न किया जाय वह एक न एक दिन खुलेगा जरुर,खुलता भी है खुलना ही है एक दिन ..!
तब बेहतर यही है अर्जुन बन जाओ ..नियति का माध्यम …तुम गलत नहीं कर रहे तो गलत सहना क्यों और फिर गलत होते देखना भी …क्यों ..? याद रखना ..धर्मयुद्ध में गांडीव उठानी ही होगी अर्जुन को एक बार नही ..बार बार ..हजार बार ..!!
– रंजन कुमार