मेरे प्रकाशित काव्य संकलन अनुगूँज पुस्तक मे संकलित प्रस्तुत है ये रचना ..
राम को वनवास
दे ही दिया जब
तो नियति है फिर
यही दशरथ की
मरो पुत्र वियोग में
रोवो तड़पो चीत्कार करो!
सुकून की साँस
मिल नहीं सकती
फिर दशरथ को
कभी – नहीं ,
किसी भी तरह से नहीं
जो राम जैसे पुत्र को
वन भेज दे ..!
भरत को राज्य और
राम को वनवास ,
ये निर्णय है दशरथ का
तो भरत के साथ
भरत के राज्य में ,
सुकून की एक भी साँस
नहीं लिखी फिर ..
विधाता ने दशरथ के लिए !
भरत राम की जगह
राजा हो सकता है
वह राम सा सुकून
नहीं दे सकता,
पुत्र की मर्यादा ,
राम रखेगा तो भी
पिता की मर्यादा को
तोड़ने के दंड के
भागी तो हैं ही
अब दशरथ फिर,
और कर्म किसी को भी
फिर कहाँ छोड़ता है ?
राम को वनवास
दे ही दिया जब
तो नियति है फिर
यही दशरथ की
मरो पुत्र वियोग में ,
रोवो तड़पो चीत्कार करो !!
– रंजन कुमार