पसाकोलोजि भौजी उपन्यास की भूमिका – Introduction

girl sitting alone

किसी अधेड़ मगर अबतक कवारें नौकरी न मिलने की वजह से जिद के कारण शादी न करनेवाले और अबतक ब्याह को तरस रहे बिहार के दूल्हे को नौकरी लगने के बाद उसके उम्र की आधी और एकदम भूचड़ देहाती परिवेश से आई दुल्हन से शादी हो जाय तो समझिये नौटंकी का पूरा मसाला तैयार है फिर ..


वो लड़की जो चार आदमी के सामने आते ही बुक्का फाड़ रो दे जिसके आत्मविश्वास का स्तर पहले वह था अब अपनी बाजीगरी दिखाएगी और त्रिया चरित्र के हुनर से मर्द को अपने पालतू बनाने मे सहेलियों और माँ से मिली सारी हुनर झोंक देगी और वो 40 को स्पर्श करता अधेड़ दूल्हा इतना बढ़िया और अच्छी नस्ल वाला कुत्ता बन जायेगा जिसके सामने असली कुत्तों को भी शर्म आ जाय ..

और वो छोरी जो कन्या निरीक्षण मे चार को देखते ही रो देती थी अब पति नाम के कुत्ते की पट्टा थामे हाथ मे बार बार दहेज उत्पीड़न मे अंदर कर दूंगी की धमकी दे दे सास ससुर को रुला रुला भूखा सुलाने मे उस्तादी हासिल कर चुकी .. और दहाड़ती मिलेगी .. अब क्या मजाल वो पालतू पति उसकी मर्जी के वगैर चूँ भी करेगा .. और रोज रोज नौटंकी फालतू बीबी के पालतू पति का दिखता मिलेगा ..

साइकोलॉजी से सत्तर प्रतिशत नम्बर मे एमए पास इ छोरी साइकोलॉजी को पसाकोलोजि पढ़ती है तो ज्ञान का स्तर समझ ही गए होंगे .. यही केंद्रीय चरित्र है  मेरे अपकमिंग उपन्यस पसाकोलोजि भौजी का ..फेस्टिव स्पेशल मे बोनस ये की दूल्हा दुल्हन दोनो के परिवार पधारें हो फेस्टिव महसूसने तो समझिये मोहल्ले वाले फेस्टिव करते हैं फिर इतना फैमिली ड्रामा चलता मिलेगा ..

सासु तीर्थ ससुरा तीर्थ तीर्थ साला साली है यह गाना तो फिर ऐसे कर्मजले दूल्हों की पहली पसंद बन जाती है फिर ..यह दृश्य हर 10 मे से 4 प्रवासी बिहारी के घर दिखेगा जिसने नौकरी न मिलने की वजह से 40 की उम्र मे जा शादी की है और इनकी नौटंकी मोहल्ले मे चर्चा का विषय .. बिहार से बाहर बिहारी शब्द को मोहल्ले मे मजाक का पर्याय बनते देखना दुखद तो होता है पर इनके फ़ैमिली ड्रामे होते जबरदस्त और मनोरंजक हैं ..

छोड़िये हमारे मोहल्ले के ऐसे ही प्रोफेसर साहब अभी गाना सुन रहे हैं दिनभर के ड्रामे के बाद .. वही सासु तीर्थ ससुरा तीर्थ .. फरोफ्रेसर की सास बोल रही है पति से दामाद नीक मिलल बा .. ई इलुआ कब्जा मे ले लेली ह पूरा ..और प्रोफेसर की माँ सुबक रही पति से अपने .. अंचरा के हवा लाग गइली ह बबुआ के सब बर्बाद हो गईल .. पेट भी अपन अब इहाँ भारी ह फरोफ्रेसर बेटा के पास 75+ तनख्वाह पर पेट भारी !!

पढ़ते रहिये उपन्यास – 
 
————————————

About The Author

2 thoughts on “पसाकोलोजि भौजी उपन्यास की भूमिका – Introduction”

  1. इस दौर की तल्ख सच्चाई सर ..और इस समाजक समस्या को उपन्यास में दर्ज करने की मेरी कोशिश ..आभार सर ..

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top