अक्सर लोग कहते हैं प्रेम में
राधा होना,
मीरा हो जाना सरल नहीं है..
मैं कहता हूं प्रेम में
श्री कृष्ण होना क्या सरल है ?
सर्व समर्थ होते हुए भी
आजीवन आत्मीय प्रेम का
विछोह सहना…
तड़पना पर उफ्फ तक न करना
क्या सरल है ?
मीरा उपासना कर सकती है,
प्रेम में नटवर को पाने के लिए,
और राधा शिकवे शिकायतें रख
रो सकती है वियोग में…
पर कृष्ण को तो
मौन हो प्रेम का दर्द सहना है…
प्रेम अनुपम है, अद्वितीय है
अनूठा है और परमानंद है…
इसलिए सदा याद रहे
प्रेम में राधा होना सरल नहीं
मीरा होना भी सरल नहीं…
तो कृष्ण होना भी सरल कहाँ है ?
युगों में कोई ऐसा प्रेम
पल्लवित पुष्पित होता है
कभी कभी जमीं पर ..!
रंजन कुमार