मैं केवल शरीर नहीं हूँ,
मैं बुलंद स्वर हूँ,
परमात्मा का,
नाद हूँ आत्मा का,
और हस्ताक्षर हूँ काल का..
शरीर यह मिट भी गया तो क्या..
मैं गूँजता रहूँगा ब्रह्मांड में
सत्य का निर्विवाद सुर बनकर,
थप्पड़ जड़ता रहूँगा
हर एक जड़ता पर…
हर चैतन्य के गीत गुनगुनाता…
अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ,
और इसे मिटा सकें
यह हक प्रकृति ने
किसी को न दिया है आजतक ..!
तुम गलतफहमी में न पड़ना
मैं केवल शरीर नहीं हूँ…
प्रेम का अनंत पुंज हूँ मैं
जो प्रेम के साथ जुड़ा रहेगा
अनंत तक…!
– रंजन कुमार