भारत की राजनीति आजादी के बाद सबसे निराशाजनक दौर से गुजर रही है अभी !
विपक्ष का नेतृत्व एक पप्पू के हाथ मे है तो सत्ता पक्ष में नेतृत्व एक बहुत बड़े गप्पू व्यक्ति के हाथ मे है…
6 सालों में बड़ी बड़ी बातों के सिवा अन्य कोई कार्य नहीं किया गया!जमीन पर वह परिवर्तन नहीं आ सका जिसके लिए ऐतिहासिक जनमत मिला था..!
कालाधन,बेरोजगारी,भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण करने में बीजेपी नाकामयाब रही जो मूलभूत समस्याएँ थी देश की…!
अर्थव्यवस्था पर पकड़ इस सरकार की कभी रही ही नहीं तो अच्छे दिनों का ढोल ही केवल बजता रह गया!
अगर बीजेपी नही जागती तो समय थप्पड़ मारकर जगाएगा एक दिन…और इस बार सत्ता से बीजेपी बाहर हुई तो याद रखिये,जन उम्मीदों पर उमड़े निराशा के बादल इतने घनीभूत होंगे कि बीजेपी दशकों के लिए सत्ता से फिर बाहर हो जाएगी!
कोंग्रेस गाँधी परिवार की छत्रछाया से उबर जाएगी जिसदिन उसदिन कोंग्रेस पुनः सत्ता में वापस आएगी मजबूती से …
क्योंकि कोंग्रेस छोड़ बीजेपी में गए जिन नेताओ के दम पर कोंग्रेस मुक्त भारत बनाने चली थी बीजेपी वह कोंग्रेस युक्त बीजेपी जो आज मजबूत दिख रही है,उसे बिखरने में वक्त नहीं लगेगा,क्योंकि दल बदलुओ का चरित्र केवल सत्ता सुख में होता है यह सबसे प्रमाणित सत्य है ..!
वैसे अब बीजेपी चरम उत्थान से चरम पतन की ओर की यात्रा पर है,सम्भवतः इसे समझने में बीजेपी के नीति निर्धारक चूक कर रहे हैं,क्योंकि आत्म मुग्धता सच को देखने नहीं देती और बीजेपी अभी आत्म मुग्धता के अंधियारे में है,वास्तविकता नही समझ पाएगी!
यही जनता उठाती है बिठाती है सर पर और यही उठाकर फेंक भी देती है…यही हुआ है यही होता रहेगा …! राजनीति संक्रमणकाल में है भारत की,और एक परिपक्व लोकतंत्र में अपनी अपरिपक्वता का बेशर्म प्रदर्शन करने में सभी राजनीतिक दल मस्त हैं…
रंजन कुमार