नदी अपनी राह खुद बनाती है जंगलों पहाड़ों और मैदानों के बीच से गुजरती हुई समुद्र तक…जबकि नहरें खोदी जाती हैं दूसरों के द्वारा …नदी की गहराई प्राकृतिक है नहरों की कृत्रिम,
कुछ बरसाती नाले भी उफनते हैं कुछ पल के लिए..नदी बहती रहती है अपनी गति से अनगिनत नालों नहरों को उफनते हुए रास्तों मे देखती हुई अपनी मौज मे..
.कुछ लोग अपने नालों और नहरों को नदी जैसी बनाने की जुगत मे लगे रहते हैं इस तथ्य से अनजान की नाले और नहरों मे वो रवानी कहाँ से आएगी जो नदी मे प्राकृतिक है नैसर्गिक है…
लेकिन ये प्रकृति का नियम भी है …नदी की रवानी देख जलनेवाले अक्सर ढोल नगाड़े पीट जश्न तब भी मनाने लगते हैं जब उनकी कागज की नाव बरसाती उफनते नाले मे और नहरों मे तैरने लगती है…
खुद को भरम मे पाल लेते हैं नदी मे तैरती नाव से तुलना करके अपने नाले नहरों मे तैरती नाव को …उससे भी ज्यादा सुन्दर समझ के …
ऐसे मानसिक दिव्यांगों को जरूरत होती है फिर किसी प्रोफेसर की जो इसमे दक्ष हो और उनकी बुद्धि का पट खोल सके…
नाले और नहरों के किनारे उसे नदी समझ पिकनिक मना रहे लोगों सुंदरता नैसर्गिक निहार आओ नदी मे तैरती नाव को देख के तो फिर कागज की तैरती ये नाव नालों नहरों मे आनंद नही देगी…
जबतक ये नैसर्गिक आनन्द न मिल जाये कागज की अपनी नावे तैरा के खुशफहमी पाल सकते हो यारों फिर गंगा स्नान की भी किसी नाले मे नहाके …
खुशफहमी का वहम भी अच्छा है सेहत के लिए ..नकली च्यवनप्राश खाकर भी कुछ लोग स्वस्थ रह लेते हैं जी ही लेते हैं चापलूसी के च्यवनप्राश में रोटियाँ लपेट लपेट खा खाकर !!
– रंजन कुमार