लघुकथा.. इधर से कोई गधा तो नही गुजरा
इधर से कोई गधा तो नही गुजरा है अभी …?
वह तो सच मे अपने गधे को ढूंढ रहा था,पर लोग थे की नाहक ही बुरा मान गए,लात घूंसे बरस गये यूँ ही बेचारे पर ! अजीब बात है वह बेचारा समझ नही सका !
बंजारा है और सभ्य लोगो की सभ्यता से भी बहुत दूर..मैंने पुचकारा थोड़ा तो मुझसे ही पूछ बैठा,भाई साहब मेरा कसूर .?.इधर से कोई गधा तो नही गुजरा बस इतना ही तो पूछा था,ये लोग क्यों मुझपर बिफर पड़े…?
अब क्या करता राज बताया उसको, किसी के मुंह पर इस तरह नही कहते,तहजीब तो यही है …!
सबसे बड़ा कसूर इतना ही है मेरे दोस्त कि पॉश कोलोनी में खड़े हो उतने गधों के बीच खड़े होकर तुम एक गधा खोज रहे थे !
– रंजन कुमार