Gita Chapter 1: (श्लोक 1 to 5) Arjuna Vishada Yoga

भगवद गीता का यह अध्याय, ‘अर्जुन विषाद योग,’ एक अद्भुत और गहरे विचारशील योग को प्रस्तुत करता है जो महाभारत के महान योद्धा अर्जुन के मन की उथल-पुथल को छूने का प्रयास करता है।

इस पोस्ट में, हम इस योग के प्रारंभिक पाँच श्लोकों की व्याख्या करेंगे, उनका अर्थ समझेंगे, और इस योग की शिक्षाओं को गहराई से विश्लेषण करेंगे।

इस योग के माध्यम से हम अर्जुन के अंतर्निहित विचारों में जाएंगे और महाभारत के महत्वपूर्ण संवादों के माध्यम से उनके आत्मा की उत्कृष्टता को समझेंगे।

यह योग हमें जीवन के महत्वपूर्ण सवालों का सामना करने के लिए सजग और संतुलित बनाता है, और हमें आत्म-परिज्ञान की ओर प्रवृत करता है।

Bhagavad Gita Chapter 1: भगवद गीता के आरंभ की जड़ें

भगवद गीता का पहला अध्याय, ‘अर्जुन विषाद योग,’ महाभारत के आरंभिक पर्व में स्थित है और यह एक महत्वपूर्ण योग है जो आध्यात्मिक जीवन के मौद्रिक में दीप्ति बिखेरता है।

इस योग के माध्यम से, गीता अर्जुन की आत्मा के अंतर में घूमती हुई उसके विचारों, विस्मय, और संदेहों को जाँचती है, जब उसे धर्मयुद्ध की ओर कदम बढ़ाना होता है।

यह अध्याय देखता है कि योद्धा अर्जुन कैसे स्वजनों और गुरुओं के साथ युद्ध के लिए तैयार होकर भी अपने उलझे हुए भावनाओं में डूबा हुआ है।

इसमें अर्जुन के चिन्हित मनोबल के साथ उसकी असमर्थता और विस्मृति की दशा को दर्शाते हुए भगवान श्रीकृष्ण उसे धर्म और कर्तव्य के सिद्धांतों की ओर मोड़ने का प्रयास करते हैं।

Gita Chapter 1: (श्लोक 1 to 5)

Shloka 1:

धृतराष्ट्र उवाच |
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः |
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय || 1.1 ||

Shloka 1 अनुवाद:

धृतराष्ट्र ने कहा: कुरुक्षेत्र में धर्मयुद्ध के लिए जुटे हुए सभी योद्धाओं की ओर से, मेरे पुत्र दुर्योधन और पाण्डुपुत्र युद्ध की इच्छा से भरे हुए हैं। हे सञ्जय, तुमने इस समय में मेरे पुत्र और पाण्डवों को क्या करते हुए देखा?

Shloka 1 संदर्भ और अर्थ:

यह श्लोक महाभारत के भगवद गीता का पहला श्लोक है जो कुरुक्षेत्र के युद्ध का आरंभ करता है। धृतराष्ट्र, कौरवों के पिता, अपने मंत्री सञ्जय से युद्धभूमि का वर्णन और पाण्डवों तथा कौरवों की तैयारी पर प्रश्न कर रहे हैं । इसके माध्यम से वह यह जानना चाहते हैं कि उनके पुत्र दुर्योधन और पाण्डुपुत्र क्या कर रहे हैं।

Shloka 1 शिक्षा और अंतर्दृष्टि:

भगवद गीता में यह श्लोक महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों को साझा करता है। कुरुक्षेत्र को “धर्मक्षेत्र” कहकर इसे एक धार्मिक युद्ध का स्थान बताया गया है। इसका सारांश है कि हर क्षेत्र अगर धर्मयुद्ध में लगा होता है, तो वह धर्मक्षेत्र बन जाता है। इस युद्ध के माध्यम से अर्जुन को अपने धर्म का पालन करने के लिए उत्साहित होने का संदेश दिया गया है।

इसके आलावा, श्लोक में धृतराष्ट्र की चिंता और उसका संजय से पूछना भी दिखाता है कि कहानी कैसे आगे बढ़ने वाली है और युद्ध के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों का सामना कैसे करना चाहिए।

Shloka 2:

सञ्जय उवाच |

दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा |

आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् || 1.2 ||

Shloka 2 अनुवाद:

संजय बोले –

उस समय, जब दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना को युद्धव्यूह में व्यवस्थित देखा, तब वह अपने आचार्य द्रोणाचार्य के पास गया और बोला।

Shloka 2 संदर्भ और अर्थ:

इस श्लोक में, संजय धृतराष्ट्र को बता रहे हैं कि दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना को व्यूह रचना में देखा। इसके बाद, उसने अपने आचार्य द्रोणाचार्य के पास जाकर उनसे बातचीत करते हुए उनको सेना की स्थिति और युद्ध की स्थिति के बारे में सूचित किया।

Shloka 2 शिक्षा और अंतर्दृष्टि:

यह श्लोक गीता के पहले अध्याय की शुरुआत है और यह दिखाता है कि दुर्योधन कैसे अपने आचार्य के पास गया और उनसे सेना की रचना और स्थिति के बारे में संवाद किया। यह दिखाता है कि उसने आगामी युद्ध के प्रति अपनी निर्णय क्षमता को परिष्कृत करने के लिए अपने आचार्य से सलाह मांगी।

Shloka 3:

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् |

व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता || 1.3 ||

Shloka 3 अनुवाद:

हे आचार्य, आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र (धृष्टद्युम्न) द्वारा व्यूहबद्ध हुएपांडू पुत्रों की इस महती (बड़ी भारी ) सेना को देखिए ।

Shloka 3 संदर्भ और अर्थ:

इस श्लोक में, संजय धृतराष्ट्र को बता रहे हैं कि धृष्टद्युम्न, द्रुपद के पुत्र, ने पाण्डवों की सेना को व्यूहबद्ध किया है और द्रोणाचार्य को इसे देखने का ठीक से परिक्षण करने का सुझाव दुर्योधन देता है ।

यह घटना महाभारत के भगवद गीता के पहले अध्याय का हिस्सा है और इसमें धृतराष्ट्र को युद्धभूमि का विवेचन करने का मौका मिलता है। इसके माध्यम से उसे यह ज्ञात होता है कि पाण्डवों की सेना में धृष्टद्युम्न की महती सेना व्यूहबद्ध होकर तैयार है।

Shloka 3 शिक्षा और अंतर्दृष्टि:

यह श्लोक बताता है कि पाण्डवों की सेना में धृष्टद्युम्न की महती सेना व्यूहबद्ध है, जिससे कुरुक्षेत्र के युद्ध का माहौल तैयार हो रहा है।

Shloka 4:

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथ: || 1.4 ||

Shloka 4 अनुवाद:

यहां, महारथी और शूरवीर योद्धा अर्जुन, भीम, के समान ही युयुधान, विराट और महारथी द्रुपद, इस युद्ध में पांडवों के पक्ष में खड़े हुए हैं।

Shloka 4 संदर्भ और अर्थ:

इससे यह भी सामने आता है कि उनमें से कई योद्धाओं ने धर्मपरायणता के साथ सैन्य समर्थन करने का संकल्प किया है।

Shloka 4 शिक्षा और अंतर्दृष्टि:

इस भाग में, हमें संघर्ष की तैयारी और युद्ध में सहयोग करने के लिए उपयुक्त योद्धाओं का परिचय मिलता है।

Shloka 5:

धृष्टकेतुश्चेकितान: काशिराजश्च वीर्यवान् |
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गव: || 1.5||

Shloka 5 अनुवाद:

धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, वीर्यवान पुरुजित, कुन्तिभोज, और शैब्य, ये सभी महारथी और धर्मपरायण योद्धा हैं।

Shloka 5 संदर्भ और अर्थ:

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण धृतराष्ट्र को और कुछ महत्वपूर्ण सेनापतियों के नाम बता रहे हैं जो कौरव सेना के पक्ष में हैं। इन योद्धाओं का उल्लेख होना यह दिखाता है कि कौरवों की सेना में विभिन्न राज्यों और राजाओं की समृद्धि वर्ग के सशक्त योद्धाएं शामिल हैं।

Shloka 5 शिक्षा और अंतर्दृष्टि:

इस अध्याय में, हमें यह दिखता है कि धृतराष्ट्र के अज्ञान के बावजूद, उन्हें संजय द्वारा सभी प्रमुख योद्धाओं का विवरण मिल रहा है। इससे हमें यह सीखने को मिलता है कि ज्ञान और अंतर्दृष्टि के अभाव में भी एक व्यक्ति कई महत्वपूर्ण घटकों की जानकारी से वंचित हो सकता है।

विश्लेषण और परिचय

गीता के पहले अध्याय के पाँच श्लोकों की शुरुआत धृतराष्ट्र के विचारों से होती है, जो धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में युद्ध की आगामी घड़ी के बारे में चिंतित हैं। इसमें दृष्ट्वा पाण्डवों की सेना और उनके संघर्ष को देखकर दुर्योधन का विस्मय व्यक्त होता है।

आधुनिक जीवन में अनुप्रयोग:

इन श्लोकों के माध्यम से धृतराष्ट्र की चिंता और दुर्योधन की अशांति व्यक्ति के जीवन में आत्म-परीक्षण और धार्मिक दायित्व की महत्वपूर्णता को स्पष्ट करती हैं। इसका आधार महाभारत के मौद्रिक संवादों से लिया गया है, जो आज के समय में भी हमें मार्गदर्शन कर सकते हैं।

निष्कर्ष:

इस विशेष अध्याय के पहले पाँच श्लोकों से हमें स्पष्ट होता है कि धृतराष्ट्र की चिंता और दुर्योधन का विस्मय एक युद्ध के आगमन से कैसे उत्सुक हो रहा है, जो उस समय के सामाजिक, राजनीतिक, और आध्यात्मिक संदर्भ में हमारे लिए भी एक महत्वपूर्ण सीख लेने का अवसर प्रदान करता है।

Share the content:
Avatar photo
Hello Bareilly
Articles: 2

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *