जब भी मिलते हैं
सहज नहीं रहते वो ..
फूलने लगते हैं
गुब्बारे की तरह ..!
और फिर मैं
फिर मिलूँगा कह
चल पड़ता हूँ
वो पिचकने लगते हैं
पंक्चर ट्यूब की तरह …!
अहम ऊनका
अब होश में आता है,
रोकते हैं आओ न
कुछ सुनो कुछ सुनाओ.!
अगर रुका
फिर फूलने लगेगा
इनके अंदर वही ..
अहम उनका ..!
डरता हूँ कही
फट न जायें ,
फूल के ज्यादा …
इसलिये चल पड़ता हूँ ..
वो फिर
पिचकने लगते हैं ,
पंक्चर ट्यूब की तरह ,
हाँ ,एक पंक्चर ट्यूब …!!
Hindi Poetry – एक पंक्चर ट्यूब
– रंजन कुमार
well said…regards