हरसिंगार के फूलों के जैसे
बिखरे मिले
बहुत से महमहाते पुराने ख्वाब मुझे ..
जो तुम्हारी आँखों से टपके थे
बूंद बूंद वर्षों में ..!
मैंने उन्हें एक एक कर चुना
अपनी पलकों से ..
और फिर
सजा देना चाहता हूँ
अंजन सा तुम्हारी आँखों में ..!
अब इन्हें बिखरने मत देना ..
मैं वही मैं हूँ
और तुम भी वही तुम अगर ..
साथ मिल हम बन जायेंगे ..
और इस सफ़र में
फिर से खोजेंगे
सब खवाबों की ताबीर भी …!!
– रंजन कुमार