
सख्त खामोशिओं के पहरे में
देखो आसमाँ गुनगुनाता है ,
ये कौन झांकता है चाँद के पीछे ,
कौन मुझको बुलाता है !
मुद्दतों से जिसे पुकारा ,
जिसकी आरजू में खाक छानी है ,
वो मिलने आ रहा मुझसे वक़्त
वह आ गया सा लगता है !
– रंजन कुमार
सख्त खामोशिओं के पहरे में
देखो आसमाँ गुनगुनाता है ,
ये कौन झांकता है चाँद के पीछे ,
कौन मुझको बुलाता है !
मुद्दतों से जिसे पुकारा ,
जिसकी आरजू में खाक छानी है ,
वो मिलने आ रहा मुझसे वक़्त
वह आ गया सा लगता है !
– रंजन कुमार