बन्द खिड़कियां खोल दी मैंने
जिससे चाँद झाँक सके
कमरे के अंदर मेरे…!

चाँद की झांकती चांदनी मे
चाँद को छू के लौटती
तेरी आँखों का भी नूर था प्रियतम ..
उतर गयी जो दिल मे सीधे !

तुम वहां देखो चाँद को जहां भी हो,
और मैं उसे निहारता हूँ
वहीं ..जहां मैं हूँ …!

और मुझतक आ रही
खिड़की से झांकती ,
सावन की मदभरी चांदनी मे
तुम्हारी प्रेम मे पगी ..
वो दो आँखें ..
उनका सौंदर्य उनके सब गीत !

तेरे सिवा कब की आरजू कभी
इस दिल ने किसी और की ..?
सच कहती है ये चाँदनी
मोहब्बत सिर्फ एक बार होती है !!

रंजन कुमार

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