टेलीविजन के पर्दे पर ज्यादा न्यूज आपको मानसिक रूप से बीमार कर रहा है और आपको इसका पता भी नहीं चला होगा कि कब आपने अपनी मौलिकता और सोचने की क्षमता को कैसे यूँ ही खो दिया !
टेलीविजन के परदे पर बैठे एंकर और इनके साथ बैठे इनके मेहमान चीख चीखकर आपके दिमाग में अपनी बात ठूंसने में लगे हैं, अपने विचार आपके उपर आरोपित करने में लगे हैं और जाने अनजाने आप उनके एजेंडे के अनुसार उनके इस मानसिक खेल में उलझ गये हैं !
उन्हीं की भाषा आप बोलने लग गये कब यह आपको पता भी नहीं चला होगा ! हर समाचार के अनेक आयाम होते हैं और समाचार वाचक को सिर्फ समाचार क्या है यह बताकर छोड़ देना चाहिए जिससे श्रोता खुद उस समाचार की परतों पर जितनी उसको जरूरत हो सोच विचार कर अपनी राय कायम कर ले !
यहीं पर समाचार के बाजार में वैश्वीकरण हावी हुआ और सबसे पहले ब्रेकिंग न्यूज दिखाने की प्रतिस्पर्धा जो शुरू हुयी वह धीरे धीरे आक्रामक रुख लेती हुयी फिर अब इस दिशा में है जिसमे समाचार के अलावा टीवी पर वह सबकुछ है जो आपको नहीं चाहिए या जिसकी जरूरत आपको नहीं थी !
किसी भी न्यूज पर आपका अपना भियुज अर्थात आपका अपना नजरिया क्या है यह आज महत्वपूर्ण नहीं रह गया किसी के लिए जो कि आपका मौलिक अधिकार था आपकी वह सोच जो कि आपके व्यक्तित्व के खिलने की अनिवार्य आवश्यकता भी थी और और आपके सामाजिक जीवन की एक जरूरत भी, जिससे आप अपनी जिन्दगी में अपने समाज के प्रति अपनी स्वतंत्र सोच को विकसित कर सकते थे राष्ट्र और समाज के लिए मगर यहीं पर खेल हो गया !
टेलीविजन के परदे द्वारा छोटी छोटी न्यूज क्लिप के बाद आधे आधे घंटे उनपर आयोजित जिसे आप प्रायोजित बहस कह सकते हैं वह आपके बौद्धिकता पर एक कुत्सित हमला है जो आपकी विचारधारा को कुंद करने के लिए अपने विचारों को आपपर आरोपित कर आपको आपकी संस्कृति से अलग करने का मीडिया का एक बड़ा षड्यंत्र था हमारी संस्कृति पर सुनियोजित बौद्धिक हमला था और इसमें जो भी मीडिया घराने शामिल थे यह सब विदेशी फंडिंग द्वारा चलाए जा रहे थे !
ये लोग इसमें कामयाब हो गये और घर घर में टीवी चैनल पर एक एक मिनट की न्यूज पर आधे आधे घंटे से लेकर दो दो घंटे की बेकार की प्रायोजित बहस जो शुरू कर दी लोग देखने लग गये ! फिर सकारात्मक खबरें बंद हो गयी धीरे धीरे प्रायोजित इनके खेल द्वारा और अगर आयीं भी कभी तो केवल हेडलाइंस में सिमटती चली गयीं !
हम अभ्यस्त होते चले गये इस नशे के और परिणाम यह है की हर एक मुद्दे पर आज हमारा विचार हमारा नहीं है बल्कि जिस एजेंडे के तहत टीवी स्क्रीन पर वह बहस हुयी उससे प्रभावित है हमारी विचारधारा ही पूरी की पूरी उसे लेकर,क्योंकि हम अपने स्तर पर किसी भी खबर पर विचार करते उससे पहले ही हम पर आरोपित कर दिए गये दूसरों के विचार ! हम वही सोच रहे सही या गलत जो वह हमारे दिमाग में भरना चाहते थे !
विचार करके देखिये आप न्यूज देख रहे हैं टेलीविजन स्क्रीन पर या दूसरों के उसपर इनफ्लूएन्सड वियुज ? प्रश्न बहुत बड़ा है और आप खुद देखेंगे की न्यूज के एडिक्शन में आज आप किस तरह से मानसिक रूप से बीमार हो गये हैं ये बेकार की प्रायोजित चीखें सुनसुन कर ..!
हमें जरूरत है केवल खबर की न्यूज की ओरिजिनल न्यूज की बस ..न उससे कुछ भी कम न ही उससे एक शब्द फिर ज्यादा ! जिसको जितनी जरूरत होगी न्यूज पर अपना भियुज खुद बना लेगा,समय भी बचेगा और आप पायेंगे आप ज्यादा खुश हैं पहले से !
हमें जरूरत है केवल खबर की न्यूज की ओरिजिनल न्यूज की बस ..न उससे कुछ भी कम न ही उससे एक शब्द फिर ज्यादा ! जिसको जितनी जरूरत होगी न्यूज पर अपना भियुज खुद बना लेगा,समय भी बचेगा और आप पायेंगे आप ज्यादा खुश हैं पहले से !
अखबार और न्यूज चैनल से एक सप्ताह दूर होकर देखिये ..आपको सुकून होगा,आराम लगेगा मष्तिष्क को,ताजगी महसूस होगी ! तब आप इस आलेख का मेरे मर्म समझ पाएंगे और जब मर्म समझेंगे तब अपनी परेशानी भी समझेंगे की बिमारी क्या लग गयी है आपको !
जब आपको यह बीमारी समझ आ जाए अपनी तो निदान मुश्किल नहीं ..सिर्फ किसी न्यूज पोर्टल से हेडलाइंस जानने भर मतलब रखिये और फ़ालतू इनकी बेकार की किचकिच सुनने के व्यसन से निजात पाकर अपने अपनों को समय दीजिये जो ज्यादा महत्वपूर्ण है !
जब आपको यह बीमारी समझ आ जाए अपनी तो निदान मुश्किल नहीं ..सिर्फ किसी न्यूज पोर्टल से हेडलाइंस जानने भर मतलब रखिये और फ़ालतू इनकी बेकार की किचकिच सुनने के व्यसन से निजात पाकर अपने अपनों को समय दीजिये जो ज्यादा महत्वपूर्ण है !
– रंजन कुमार
विषय और विमर्श की गंभीरता का प्रायोजित शोर-गुल में गुम हो जाना वाकई अहितकर है । व्यक्ति के लिये भी ,समाज के लिये भी
सराहनीय एंव जागरूक करने वाला गंभीर लेख . . साधुवाद सहित सर ������